Tuesday, April 13, 2021

 "बैकुंठ चतुर्दशी"
पौराणिक मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आये। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर के उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हजार कमल पुष्प चढाने थे। एक पुष्प की कमी देख कर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के समान ही हैं। मुझे 'कमलनयन' और 'पुण्डरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढाने को तत्पर हुए तभी विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न हो कर देवाधिदेव महादेव प्रगट हो कर बोले - 'हे विष्णु! तुम्हारे समान जगत में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को कोटि सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र विष्णु जी को प्रदान किया।
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु सृष्टि की सत्ता का कार्यभार भगवान शिव को सौंप कर पाताल लोक के राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं, इसलिए इन दिनों में शुभ कार्य नहीं होते। इस समय सत्ता शिव के पास होती है एवं बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता भगवान विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। जब सत्ता भगवान विष्णु जी के पास आती है तो सृष्टि के कार्य आरंभ हो जाते हैं। इसी दिन को बैकुंठ चतुर्दशी या हरि-हर मिलन कहते हैं।
                                             
                        🌷जय श्री हरिहर।🌷🙏

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