Tuesday, April 13, 2021

 👌🏽👌🏽यही सत्य है 👌🏽👌🏽


*कंद-मूल खाने वालों से*

मांसाहारी डरते थे।।


*पोरस जैसे शूर-वीर को*

नमन 'सिकंदर' करते थे॥


*चौदह वर्षों तक खूंखारी* 

वन में जिसका धाम था।।


*मन-मन्दिर में बसने वाला* 

शाकाहारी *राम* था।।


*चाहते तो खा सकते थे वो* 

मांस पशु के ढेरो में।।


लेकिन उनको प्यार मिला

' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥


*चक्र सुदर्शन धारी थे*

*गोवर्धन पर भारी थे*॥


*मुरली से वश करने वाले*

*गिरधर' शाकाहारी थे*॥


*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*

चोटी पर फहराया था।।


*निर्धन की कुटिया में जाकर* 

जिसने मान बढाया था॥


*सपने जिसने देखे थे*

मानवता के विस्तार के।।


*नानक जैसे महा-संत थे*

वाचक शाकाहार के॥


*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो* 

गौरवमय इतिहास को।।


*आदम से आदी तक फैले*

इस नीले आकाश को॥


*दया की आँखे खोल देख लो*

पशु के करुण क्रंदन को।।


*इंसानों का जिस्म बना है*

शाकाहारी भोजन को॥


*अंग लाश के खा जाए*

क्या फ़िर भी वो इंसान है?


*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*

या कोई कब्रिस्तान है?


*आँखे कितना रोती हैं जब* 

उंगली अपनी जलती है


*सोचो उस तड़पन की हद*                    

जब जिस्म पे आरी चलती है॥


*बेबसता तुम पशु की देखो* 

बचने के आसार नही।।


*जीते जी तन काटा जाए*,

उस पीडा का पार नही॥


*खाने से पहले बिरयानी*,

चीख जीव की सुन लेते।।


*करुणा के वश होकर तुम भी*

गिरी गिरनार को चुन लेते॥


*शाकाहारी बनो*...!


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