Friday, April 24, 2015

लिखी कुछ शायरी ऐसी तेरे नाम
से.... कि... जिसने तुम्हे देखा भी
नही, उसने भी तेरी तारीफ कर दी..!



 एक ग़ज़ल तेरे लिए ज़रूर लिखूंगा;
बे-हिसाब उस में तेरा कसूर लिखूंगा;
टूट गए बचपन के तेरे सारे खिलौने;
अब दिलों से खेलना तेरा दस्तूर लिखूंगा।



“तारीख हज़ार साल में
बस इतनी सी बदली है…
तब दौर पत्थर का था
अब लोग पत्थर के हैं.



अरमान था तेरे साथ जिंदगी बिताने का,शिकवा है खुद के खामोश रह जाने का,दीवानगी इस से बढकर और क्या होगी,आज भी इंतजार है तेरे आने का




 इतना खूबसूरत कैसे मुस्कुरा लेते हो,इतना कातिल कैसे शर्मा लेते हो, एक बात बताओ दोस्त बचपन से ही कमीने हो, या सूरत ही ऐसी बना लेते हो




‬: याद आती है तो ज़रा खो जाते है, आंसू आँखों में उतर आये तो ज़रा रो लेते है, नींद तो नहीं आती आँखों में लेकिन, वो ख्वाबों में आएंगे यही सोच कर सो लेते है.




 कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो।




 हमने कब माँगा है तुमसे मोहब्बत
का "हिसाब किताब"..........
बस दर्द वाली किश्तें देते रहा करो
मोहब्बत अपने आप
बढ़ती "जायेगी




 ऐ दोस्त मत कर हसीनाओं से मोहब्बत वह आँखों और बातों से वार करती हैं मैंने तेरी वाली की आँखों में देखा है वो मुझसे भी प्यार करती है



 तू बेशक अपनी महफ़िल में मुझे बदनाम
करती हैं…
लेकिन तुझे अंदाज़ा भी नहीं कि वो लोग
भी मेरे पैर छुते है
जिन्हें तू भरी महफ़िल में सलाम करती है

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