Friday, April 24, 2015

‬: बिक जाएँ बाज़ार में हम भी लेकिन उससे क्या होगा..
जिस कीमत पर तुम मिलते हो उतने कहाँ है दाम अपने..




वो धागा ही था जिसने छिपकर
पूरा जीवन मोतियों को दे दिया..
और ये मोती अपनी तारीफ
पर इतराते रहे उम्र भर..




: "ज़िक्र हुआ जब खुदा की रहमतों का,
हमने खुद को खुशनसीब पाया,
तमन्ना थी एक प्यारे से दोस्त की,
खुदा खुद दोस्त बनकर चला आया."



 दिल तोड़ के जाने वाले सुन,
दो और भी रिश्ते बाक़ी हैं
इक सांस की डोरी अटकी है
इक प्रेम का बंधन रहता है



 कोरा ही रहा ख़त का पन्ना मेरी लाखों कोशिशों के बावजूद,
तेरे लिए चुन सकूँ जिन्हें वो लफ्ज ही नहीं मिले मुझे.




 ये आईने ना दे सकेंगे तुझे, तेरे हुस्न की खबर
कभी मेरी आँखों से आकर पूछ, के कितनी हसीन है तू..!




 मेरी झोली में कुछ अल्फाज़ अपनी दुआओके डाल दे ऐ दोस्त,
क्या पता तेरे लब्ज़ हिले और मेरी तक़दीर सवर जाए!!


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