हर गजल एक दास्तां है, मेरे इश्क का बयां है
मेरा ये खामोश दिल दर्द का एक आशियां है
अपनी प्यासी सरहदों के पार तेरा शहर मिला
क्या खबर थी अपने घर में तू गैरों की सामां है
साहिलों पे चलनेवाले तूफानों से डर गए
इश्क का सागर सदियों से बेवफा से परेशां है
फूलों की बस्ती में आखिर कांटों का क्या काम था
ऐ खुदा तेरे गुलशन में आ जाती क्यूं खिजां है
मेरा ये खामोश दिल दर्द का एक आशियां है
अपनी प्यासी सरहदों के पार तेरा शहर मिला
क्या खबर थी अपने घर में तू गैरों की सामां है
साहिलों पे चलनेवाले तूफानों से डर गए
इश्क का सागर सदियों से बेवफा से परेशां है
फूलों की बस्ती में आखिर कांटों का क्या काम था
ऐ खुदा तेरे गुलशन में आ जाती क्यूं खिजां है
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