Tuesday, June 16, 2015

दिल को बनाके कश्ती दरिया में चलाना है
दिल की उस कश्ती में फिर तुझको बैठाना है
कहीं नजर ना लग जाये जालिम जमाने की
पलक की ओट में सजनी तुझको छिपाना है
लगाके पंख आशा के नभ में उड़ाना है
विश्वास का दीपक तेरे दिल में जलाना है
आयना देखके तुझको शरमाना पड़ जाये
उस हद तक तुझे अपने प्यार से सजाना है
निशदिन रूठना तेरा इक अच्छा बहाना है
मितवा मुझे मनुहार से आता मनाना है
कशिश होती है बहुत मीठी अधर चुंबन में
अब अधर रसपान तुझको निशदिन कराना है
अनायास तकिये में अब मुँह क्यों छिपाना है
प्यार का इक तराना मिलके रोज गाना है
मधुप्रीत बसती है क्षितिज के पार भी सजनी
हमें उस प्यार से महकता रिश्ता बनाना है

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