Thursday, March 24, 2016

सच
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वो भी क्या दिन थे
🌼जब घड़ी एक आध के पास होती थी और समय सबके पास होता था।
🌼 बोलचाल में हिंदी का प्रयोग होता था और अंग्रेज़ी तो पीने के बाद ही बोली जाती थी।
🌼 लोग भूखे उठते थे पर भूखे सोते नहीं थे।
🌼 फिल्मों में हीरोइन को पैसे कम मिलते थे पर कपड़े वो पूरे पहनती थी।
🌼 लोग पैदल चलते थे और पदयात्रा करते थे पर पदयात्रा पद पाने के लिये नहीं होती थी।
🌼 साईकिल होती थी जो चार रोटी में चालीस का एवरेज देती थी।
🌼 चिट्ठी पत्री का जमाना था। पत्रों मे व्याकरण अशुद्ध होती थी पर आचरण शुद्ध हुआ करता थे।
🌼 शादी में घर की औरतें खाना बनाती थी और बाहर की औरतें नाचती थी अब घर की औरतें नाचती हैं और बाहर की औरते खाना बनाती है।
🌼 खाना घर खाते थे और शौच बाहर जाते थे और अब शौच घर में और खाना खाने बाहर जाते हैँ।
सोचो विचारो।
तकदीर की विडंबना तो देखो ...
अनाथाश्रम में बच्चे होते हैं
...गरीब के ।
और
वृद्धाश्रम में बुजुर्ग होते हैं ...
अमीरों के ।।
..


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