Sunday, April 3, 2016

महान शायर निदा फ़ाज़ली को श्रद्धांजलिस्वरूप उनकी ही ग़ज़ल...........

सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो,,
सभी हैं भीड़ में तुम भी, निकल सको तो चलो,
 किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं,
 तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो..
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता…
 मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो.,
कहीं नहीं कोई सूरज धुवाँ धुवाँ है फ़िज़ा..
 ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो.,
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें..
इन्हीं खिलौनों से तुम बहल सको तो चलो….!!


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