Saturday, September 17, 2016

उठ जाता हूं भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते..

अब मुझे स्कूल न जाने वाले बहाने बनाने नही आते..
-
कभी पा लेते थे..घर से निकलते
ही..मंजिल को..

अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने
नही आते..
-
मुंह चिढाती है खाली
जेब.. महीने के आखिर में..

अब बचपन की तरह..…
गुल्लक में पैसे बचाने
नही आते..
-
यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..…
मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी
उठाने नही आते..…
_
माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..……

क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने
नही आते..…
_
बहला रहा हूं बस..दिल के जज्बातों को..
मैं जानता हूं..फिर वापस..
बीते हुए जमाने नही आते..…........

No comments:

Post a Comment