उठ जाता हूं भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते..
अब मुझे स्कूल न जाने वाले बहाने बनाने नही आते..
-
कभी पा लेते थे..घर से निकलते
ही..मंजिल को..
अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने
नही आते..
-
मुंह चिढाती है खाली
जेब.. महीने के आखिर में..
अब बचपन की तरह..…
गुल्लक में पैसे बचाने
नही आते..
-
यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..…
मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी
उठाने नही आते..…
_
माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..……
क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने
नही आते..…
_
बहला रहा हूं बस..दिल के जज्बातों को..
मैं जानता हूं..फिर वापस..
बीते हुए जमाने नही आते..…........
अब मुझे स्कूल न जाने वाले बहाने बनाने नही आते..
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कभी पा लेते थे..घर से निकलते
ही..मंजिल को..
अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने
नही आते..
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मुंह चिढाती है खाली
जेब.. महीने के आखिर में..
अब बचपन की तरह..…
गुल्लक में पैसे बचाने
नही आते..
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यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..…
मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी
उठाने नही आते..…
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माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..……
क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने
नही आते..…
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बहला रहा हूं बस..दिल के जज्बातों को..
मैं जानता हूं..फिर वापस..
बीते हुए जमाने नही आते..…........
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