Friday, September 23, 2016

*कहाँ पर बोलना है, और कहाँ पर बोल जाते हैं*
*जहाँ खामोश रहना है, वहाँ मुँह खोल जाते हैं.*

*कटा जब शीश सैनिक का, तो हम खामोश रहते हैं*
*कटा एक सीन पिक्चर का, तो सारे बोल जाते हैं.*

*ये कुर्सी मुल्क खा जाए, तो कोई कुछ नही कहता*
*मगर रोटी की चोरी हो, तो सारे बोल जाते हैं.*

*नयी नस्लों के ये बच्चे, जमाने भर की सुनते हैं*
*मगर माँ बाप कुछ बोले, तो बच्चे बोल जाते है*

*फसल बर्बाद होती है, तो कोई कुछ नही कहता*
*किसी की भैंस चोरी हो, तो सारे बोल जाते हैं.*

*बहुत ऊँची दुकानो मे कटाते, जेब सब अपनी*
*मगर मजदूर माँगेगा, तो सिक्के बोल जाते हैं.*

*गरीबों के घरों की बेटियाँ, अब तक कुँवारी हैं*
*कि रिश्ता कैसे होगा, जबकि गहने बोल जाते हैं*

*अगर मखमल करे गलती, तो कोई कुछ नही कहता*
*फटी चादर की गलती हो, तो सारे बोल जाते हैं...*

*हवाओं की तबाही को, सभी चुपचाप सहते हैं*
*च़रागों से हुई गलती, तो सारे बोल जाते हैं.*

*बनाते फिरते हैं रिश्ते, जमाने भर से हम अक्सर*
*मगर घर मे जरूरत हो, तो रिश्ते बोल जाते हैं...*

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