Wednesday, September 21, 2016

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*।। आदमी की औकात ।।*

एक माचिस की तिल्ली, एक घी का लोटा,
लकड़ियों के ढेर पे कुछ घण्टे में राख.....
बस इतनी-सी है *आदमी की औकात* !!!!

एक बूढ़ा बाप शाम को मर गया,
अपनी सारी ज़िन्दगी परिवार के नाम कर गया।
कहीं रोने की सुगबुगाहट तो कहीं फुसफुसाहट,
अरे जल्दी ले जाओ, कौन रोयेगा सारी रात ?
बस इतनी-सी है *आदमी की औकात* !!!!

मरने के बाद नीचे देखा, नज़ारे नज़र आ रहे थे,
मेरी मौत पे कुछ लोग ज़बरदस्त,
तो कुछ ज़बरदस्ती रो रहे थे।
नहीं रहा... चला गया... चार दिन करेंगे बात...
बस इतनी-सी है *आदमी की औकात* !!!!!

बेटा अच्छी तस्वीर बनवायेगा,
सामने अगरबत्ती जलायेगा,
खुश्बुदार फूलों की माला होगी......
अखबार में अश्रुपूरित श्रद्धांजली होगी......
बाद में उस तस्वीर पे जाले भी कौन करेगा साफ़
बस इतनी-सी है *आदमी की औकात* !!!!!!

जिन्दगी भर, मेरा-मेरा-मेरा किया....
अपने लिए कम, अपनों के लिए ज्यादा जिया....
कोई न देगा साथ.... जायेगा खाली हाथ....
क्या तिनका ले जाने की भी है हमारी औकात ?

हम चिंतन करें .........
*क्या है हमारी औकात ???*
😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌


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