Monday, September 12, 2016

_*उठ जाता हूं..भोर से पहले..सपने सुहाने नही आते..*_
_*अब मुझे स्कूल न जाने वाले..बहाने बनाने नही आते..*_

_*कभी पा लेते थे..घर से निकलते ही..मंजिल को..*_
_*अब मीलों सफर करके भी...ठिकाने नही आते..*_

_*मुंह चिढाती है..खाली जेब..महीने के आखिर में..*_
_*अब बचपन की तरह..गुल्लक में पैसे बचाने नही आते..*_

_*यूं तो रखते हैं..बहुत से लोग..पलको पर मुझे..*_
_*मगर बेमतलब बचपन की तरह गोदी उठाने नही आते..*_

_*माना कि..जिम्मेदारियों की..बेड़ियों में जकड़ा हूं..*_
_*क्यूं बचपन की तरह छुड़वाने..वो दोस्त पुराने नही आते..*_

_*बहला रहा हूं बस दिल को बच्चों की तरह..*_
_*मैं जानता हूं..फिर वापस बीते हुए जमाने नही आते..*

No comments:

Post a Comment