Tuesday, April 13, 2021

  एक सच्ची रात्रि कहानी 🌌
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रमेश चंद्र शर्मा, जो पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर चलाते थे, उन्होंने अपने जीवन का एक पृष्ठ खोल कर सुनाया जो पाठकों की आँखें भी खोल सकता है और शायद उस पाप से, जिस में वह भागीदार बना, उस से बचा सकता है।
रमेश चंद्र शर्मा का पंजाब के 'खन्ना' नामक शहर में एक मेडिकल स्टोर था जो कि अपने स्थान के कारण काफी पुराना और अच्छी स्थिति में था। लेकिन जैसे कि कहा जाता है कि धन एक व्यक्ति के दिमाग को भ्रष्ट कर देता है और यही बात रमेश चंद्र जी के साथ भी घटित हुई।
रमेश जी बताते हैं कि मेरा मेडिकल स्टोर बहुत अच्छी तरह से चलता था और मेरी आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी थी। अपनी कमाई से मैंने जमीन और कुछ प्लॉट खरीदे और अपने मेडिकल स्टोर के साथ एक क्लीनिकल लेबोरेटरी भी खोल ली। लेकिन मैं यहां झूठ नहीं बोलूंगा कि मैं एक बहुत ही लालची किस्म का आदमी था क्योंकि मेडिकल फील्ड में दोगुनी नहीं बल्कि कई गुना कमाई होती है।
शायद ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते होंगे कि मेडिकल प्रोफेशन में 10 रुपये में आने वाली दवा आराम से 70-80 रुपये में बिक जाती है। लेकिन अगर कोई मुझसे कभी दो रुपये भी कम करने को कहता तो मैं ग्राहक को मना कर देता। खैर, मैं हर किसी के बारे में बात नहीं कर रहा हूं, सिर्फ अपनी बात कर रहा हूं।
वर्ष 2008 में, गर्मी के दिनों में एक बूढ़ा व्यक्ति मेरे स्टोर में आया। उसने मुझे डॉक्टर की पर्ची दी। मैंने दवा पढ़ी और उसे निकाल लिया। उस दवा का बिल 560 रुपये बन गया। लेकिन बूढ़ा सोच रहा था। उसने अपनी सारी जेब खाली कर दी लेकिन उसके पास कुल 180 रुपये थे। मैं उस समय बहुत गुस्से में था क्योंकि मुझे काफी समय लगा कर उस बूढ़े व्यक्ति की दवा निकालनी पड़ी थी और ऊपर से उसके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे।
बूढ़ा दवा लेने से मना भी नहीं कर पा रहा था। शायद उसे दवा की सख्त जरूरत थी। फिर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा, "मेरी मदद करो। मेरे पास कम पैसे हैं और मेरी पत्नी बीमार है। हमारे बच्चे भी हमें पूछते नहीं हैं। मैं अपनी पत्नी को इस तरह वृद्धावस्था में मरते हुए नहीं देख सकता।"  
लेकिन मैंने उस समय उस बूढ़े व्यक्ति की बात नहीं सुनी और उसे दवा वापस छोड़ने के लिए कहा।
 यहां पर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि वास्तव में उस बूढ़े व्यक्ति की दवा की कुल राशि 120 रुपये ही बनती थी। अगर मैंने उससे 150 रुपये भी ले लिए होते तो भी मुझे 30 रुपये का मुनाफा ही होता। लेकिन मेरे लालच ने उस बूढ़े लाचार व्यक्ति को भी नहीं छोड़ा। 
फिर मेरी दुकान पर खड़े एक दूसरे ग्राहक ने अपनी जेब से पैसे निकाले और उस बूढ़े आदमी के लिए दवा खरीदी। लेकिन इसका भी मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मैंने पैसे लिए और बूढ़े को दवाई दे दी।
समय बीतता गया और वर्ष 2009 आ गया। मेरे इकलौते बेटे को ब्रेन ट्यूमर हो गया। पहले तो हमें पता ही नहीं चला। लेकिन जब पता चला तो बेटा मृत्यु के कगार पर था। 
पैसा बहता रहा और लड़के की बीमारी खराब होती गई। प्लॉट बिक गए, जमीन बिक गई और आखिरकार मेडिकल स्टोर भी बिक गया लेकिन मेरे बेटे की तबीयत बिल्कुल नहीं सुधरी। उसका ऑपरेशन भी हुआ और जब सब पैसा खत्म हो गया तो आखिरकार डॉक्टरों ने मुझे अपने बेटे को घर ले जाने और उसकी सेवा करने के लिए कहा। उसके पश्चात 2012 में मेरे बेटे का निधन हो गया। मैं जीवन भर कमाने के बाद भी उसे बचा नहीं सका।
2015 में मुझे भी लकवा मार गया  और मुझे चोट भी लग गई। आज जब मेरी दवा आती है तो उन दवाओं पर खर्च किया गया पैसा मुझे काटता है क्योंकि मैं उन दवाओं की वास्तविक कीमतों को जानता हूं। 
एक दिन मैं कुछ दवाई लेने के लिए मेडिकल स्टोर पर गया और 100 रु का इंजेक्शन मुझे 700 रु में दिया गया। लेकिन उस समय मेरी जेब में 500 रुपये ही थे और इंजेक्शन के बिना ही मुझे मेडिकल स्टोर से वापस आना पड़ा। उस समय मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की बहुत याद आई और मैं घर चला गया।
मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि ठीक है कि हम सभी कमाने के लिए बैठे हैं क्योंकि हर किसी के पास एक पेट है। लेकिन वैध तरीके से कमाएं। गरीब लाचारों को लूट कर कमाई करना अच्छी बात नहीं क्योंकि नरक और स्वर्ग केवल इस धरती पर ही हैं, कहीं और नहीं। और आज मैं नरक भुगत रहा हूं। 
पैसा हमेशा मदद नहीं करता। हमेशा ईश्वर के भय से चलो। उसका नियम अटल है क्योंकि कई बार एक छोटा सा लालच भी हमें बहुत बड़े दुख में धकेल सकता है।
 🌹शहीद दिवस 🌹

लिए होंठो पर मुस्कान चढ़े, वे फांसी के फन्दों पर
 ये देश सारा गर्व करे, भारत के इन बंदों पर
 'इंक़लाब' का नारा था औ' इंक़लाब ही लाना था
मौत का कैसा भय, वह देश का गजब दीवाना था।
अंग्रेजो के हिय में, भय का तूफान जो ला दिया
अंग्रेजी शासन भी, मुँह छिपाये तिलमिला गया।
सिंह की दहाड़ सुन जैसे सारा जंगल हिल जाता
भगतसिंह की आहट से, अंग्रेजी शासन घबराता।
देशभक्ति के मद में डूबा, वह बड़ा दीवाना था
हँसकर झूल गया  भगतसिंह मस्ताना था।
राजगुरु और सुखदेव भी साथ साथ मुस्कुराते चल दिये
जैसे वे निकले ही थे घर से, हथेली पर प्राण लिए।
सब शोक में थे डूबे, वह प्रेम गान का अभिलाषी था
देश के हृदय में जलने वाले, हजारों मशालों का साक्षी था।
 बसंती चोले को रंगने, वह मृत्यु-समर में कूद गया
एक हल्की सी आहट लिए, यह सूरज भी डूब गया।
कहा हम तो जाते हैं लेकिन ये वतन संभाल लेना
ये चोला बसन्ती दिल में, हाथो में कफ़न संभाल लेना।
ये मृत्यु तो सब एक शैय्या है, सबको ही सो जाना है
मृत्यु वह सार्थक हो, जिसे देश के काम आना है।
इंक़लाब कर चलते यारों, होंठो पर मुस्कान लिए
झूल गए वे फांसी पर, देश पर न्यौछावर जान किये।
ऐसे महान वीरो को, आओ हृदय से नमन करे
इंक़लाब का नारा और हिय में श्रध्दा सुमन लिए।
जय जय जय माँ भारती, तूने ऐसे वीरों को जन्म दिया
वीरो से भरी तेरी गोदी, जिन्होंने मुस्कुराकर विष पिया।
 एक समय था जब देशी घी गरम किया जाता था या बनाया जाता था तो आसपास के तीन चार घरों तक उसकी महक फैल जाती थी
इतनी सुंदर महक होती थी कि पूरा मन मस्तिष्क सब गमगमा जाते थे, जिस पात्र में घी रखा जाता था मात्र वही खुल जाए तब भी आसपास के वातावरण में घी की सुंदर महक फैल जाती थी
लेकिन आज कितने भी अच्छे ब्रांड का घी लाओ लेकिन कोई महक नहीं, यहाँ तक कि उसमें नाक भी घुसा लो तब भी वह महक नहीं मिलती जो आज के 20 से 30 वर्ष पहले मिलती थी
कितना मिलावट हम खाते हैं, यह सोचने वाली बात है
गाँवों में भी कमोबेश यही स्थिति हो गयी है शुद्ध घी बनाने पर भी वह महक नहीं मिल पाती जो पहले होती थी
कारण एकमात्र यही है कि पहले गायों को चराया जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति ग्रहण करती थी वह भी बिना किसी रासायनिक खाद और उर्वरकों से युक्त
जो भी था शुद्ध ग्रहण करती थी, जितना भी वनस्पति या औषधि खाती या चरती थी वह सब दूध में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा बन कर व्याप्त हो जाती थी
पूरा दूध ही औषधि युक्त होता था
तब तो दूध भी ऑक्सीटोनिक इंजेक्शन घोंप कर जबरदस्ती नहीं निकाला जाता था लेकिन आज ठीक इसके विपरीत है, अब तो दूध में कोई औषधीय गुण ही नहीं बचा
ऑक्सीटोनिक इंजेक्शन से जबरदस्ती निकाले हुए रासायनिक खाद से पोषित वनस्पतियों से बने दूध का हश्र धीरे धीरे धीमे जहर में बदलता जा रहा है
अरे आजकल तो दही तक केमिकल डालकर बनाया जाता है, जो पहले जामन से बनाया जाता था जो बिल्कुल प्रकृतिक और शुद्ध पद्धति से बनता था
धनिया, पुदीना अगर घर में आ बस जाता था तो पूरा घर महकता था लेकिन आज 😑😑
चने का साग इतना खट्टा होता था कि चटकारे लगा कर खाया जाता था लेकिन अब 😑😑
बहुत दुख होता है कि हम कहाँ से कहाँ आ गए और हैरानी की बात यह है कि इसी को हम क्रमिक विकास और आधुनिकता का नाम देते हैं
हवा, पानी, जल, नदी, झरना, वनस्पति, आकाश, मिट्टी इत्यादि कोई एक भी ऐसा तत्व बता दे जिसको हमने ज़हर न बना दिया हो
हमने विनाश का दरवाजा स्वयं खोल दिया है लेकिन यही तथाकथित विकास है और आधुनिकता की सीढ़ी है
पछतायेगा पछतायेगा फिर गया समय नहीं आएगा
 भगवान विश्वकर्मा।
विश्वकर्मा एक महान ऋषि और ब्रह्मज्ञानी थे। ऋग्वेद में उनका उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि उन्होंने ही देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया था। वे महान शिल्पकार थे। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें। 25 फरवरी 2021 यानी माघ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को भगवान विश्‍वकर्माजी का प्राकट्य हुआ। 
1.प्राचीन काल में जनकल्याणार्थ मनुष्य को सभ्य बनाने वाले संसार में अनेक जीवनोपयोगी वस्तुओं जैसे वायुयान, जलयान, कुआं, बावड़ी कृषि यन्त्र अस्त्र-शस्त्र, भवन, आभूषण, मूर्तियां, भोजन के पात्र, रथ आदि का अविष्कार करने वाले महर्षि विश्वकर्मा जगत के सर्व प्रथम शिल्पाचार्य होकर आचार्यों के आचार्य कहलाए।

2. प्राचीन समय में 1.इंद्रपुरी, 2.लंकापुरी, 3.यमपुरी, 4.वरुणपुरी, 5.कुबेरपुरी, 6.पाण्डवपुरी, 7.सुदामापुरी, 8.द्वारिका, 9.शिवमण्डलपुरी, 10.हस्तिनापुर जैसे नगरों का निर्माण विश्‍वकर्मा ने ही किया था। कहते हैं कि उन्होंने ही कर्ण का कुंडल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, पुष्पक विमान, शंकर भगवान का त्रिशुल, यमराज का कालदंड आदि वस्तुओं का निर्माण किया था। उन्होंने ही ऋषि दधिचि की हड्डियों से दिव्यास्त्रों का निर्माण किया था।

3. भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूपों का उल्लेख पुराणों में मिलता हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले विश्‍वकर्मा। इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले विश्‍वकर्मा। 

4. पुराणों में विश्वकर्मा के पांच अवतारों का वर्णन मिलता है- 1.विराट विश्वकर्मा- सृष्टि के रचयिता, 2.धर्मवंशी विश्वकर्मा- महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र, 3.अंगिरावंशी विश्वकर्मा- आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र, 4.सुधन्वा विश्वकर्म- महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र और 5.भृंगुवंशी विश्वकर्मा- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)।

5. ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। धर्म की वस्तु नामक पत्नी से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। स्कंद पुराण के अनुसार धर्म ऋषि के आठवें पुत्र प्रभास का विवाह देव गुरु बृहस्पति की बहन भुवना ब्रह्मवादिनी से हुआ। भगवान विश्वकर्मा का जन्म इन्हीं की कोख से हुआ। महाभारत आदिपर्व अध्याय 16 श्लोक 27 एवं 28 में भी इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वराह पुराण के अ.56 में उल्लेख मिलता है कि सब लोगों के उपकारार्थ ब्रह्मा परमेश्वर ने बुद्धि से विचारकर विश्वकर्मा को पृथ्वी पर उत्पन्न किया।

6. विश्‍वकर्मा के पुत्रों से उत्पन्न हुआ महान कुल ब्रह्मणों का उपवर्ग है। राजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए। प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था।

7. विश्वकर्मा के पांच महान पुत्र:-
मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे। ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे। मनु को लोहे में, मय को लकड़ी में, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे में, शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी में महारात हासिल थी।

8. विश्वकर्मा की जयंती कन्या संक्रांति (17 सितंबर के आसपास) के दिन आती है जबकि विश्‍वकर्मा समाज के मतानुसार माघ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को उनकी जयंती आती है।   
माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।
अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥- वशिष्ठ पुराण

9. वायु पुराण अध्याय 4 के पढ़ने से यह बात सिद्ध हो जाती है कि वास्तव में विश्वकर्मा संतान भृगु ऋषि कुल उत्पन्न हैं।

10. भारत में विश्वकर्मा समाज के लोगों को जांगिड़ ब्राह्मण का माना जाता है। सानग, सनातन, अहमन, प्रत्न और सुपर्ण नामक पांच गोत्र प्रवर्तक ऋषियों से प्रत्येक के 25-25 सन्तानें उत्पन्न हुईं जिससे विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है।
 हाँ भगवान है..!! 
 
एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानों की एक टुकड़ी 
हिमालय के अपने रास्ते पर थी 
बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ 
एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती 
 
लेकिन रात का समय था आपस कोई बस्ती भी नहीं थी 
लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक 
जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी  
लेकिन अफ़सोस उस पर *ताला* लगा था. 
भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर 
मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गया 
खैर ताला तोडा गया, 
तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया 
जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी । 
थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे 
लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी.. 
 
उन्होंने अपने पर्स में से एक हज़ार का नोट निकाला 
और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए.  
 
तीन महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी 15 जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में 
उसी रास्ते से वापिस आ रहे थे 
 
रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां विश्राम करने के लिए रुक गए 
 
उस दुकान का *मालिक* एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा     
 
चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच वो बूढ़े चाय वाले से उसके जीवन के  
अनुभव पूछने लगे खास्तौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में     
 
बूढ़ा उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का शुक्र अदा करता रहा  
 
तभी एक जवान बोला ” *बाबा आप भगवान को इतना मानते हो 
अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हे इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ है”*  
 
बाबा बोला *”नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे में, 
भगवान् तो है और सच में है …. मैंने देखा है” 
 
आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बूढ़े की ओर देखने लगे 
 
बूढ़ा बोला “साहब मै बहुत मुसीबत में था एक दिन मेरे इकलौते बेटे को 
आतंकवादीयों ने पकड़ लिया उन्होंने उसे बहुत मारा पिटा लेकिन 
उसके पास कोई जानकारी नहीं थी इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दिया” 
 
“मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया मै बहुत तंगी में था साहब  
और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दिया” 
 
“मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती थी 
उस रात साहब मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी “और साहब …  
उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आए” 
 
“मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा की 
मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया” 
 
” *मै दुकान में घुसा तो देखा  1000 रूपए का एक नोट, 
चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है”*   

 
“साहब ….. उस दिन एक हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थी शायद मै बयान न कर पाऊं .. 
लेकिन भगवान् है साहब … भगवान् तो है”*  बूढ़ा फिर अपने आप में बड़बड़ाया 
  
भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था 
यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया ….. 
 
पंद्रह जोड़ी आंखे मेजर की तरफ देख रही थी 
जिसकी आंख में उन्हें अपने  लिए स्पष्ट आदेश था *”चुप  रहो “ 
 
मेजर साहब उठे, चाय का बिल अदा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले 
“हाँ बाबा मै जनता हूँ भगवान् है…. और तुम्हारी चाय भी शानदार थी” 
 
और उस दिन उन पंद्रह जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में 
चमकते पानी के दुर्लभ दृश्य का साक्ष्य किया 
 
और 
 
सच्चाई यही है की भगवान तुम्हे कब किसी का भगवान बनाकर कहीं भेज दे 
ये खुद तुम भी नहीं जानते………..
 *वाह रे जिंदगी*
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* दौलत की भूख ऐसी लगी की कमाने निकल गए *
* ओर जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए *
* बच्चो के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी *
* ओर जब फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए * 
         *वाह रे जिंदगी*
         ""”"""""""""""""""'""""

*वाह रे जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""
* जिंदगी की आधी उम्र तक पैसा कमाया*
*पैसा कमाने में इस शरीर को खराब किया * 
* बाकी आधी उम्र उसी पैसे को *
* शरीर ठीक करने में लगाया * 
* ओर अंत मे क्या हुआ *
* ना शरीर बचा ना ही पैसा *
""""‛"""''""""""""'''''''''''''''''''''''''''''''''""""""""""
           *वाह रे जिंदगी*
             ""”"""""""""""""""'""""

*वाह रे जिंदगी*
""”"""""""""""""""'""""
* शमशान के बाहर लिखा था *
* मंजिल तो तेरी ये ही थी *
* बस जिंदगी बित गई आते आते *
* क्या मिला तुझे इस दुनिया से * 
 * अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते *
            *वाह  रे जिंदगी*
              ""”"""""""""""""""'""""
 यदि "महाभारत" को पढ़ने का समय न हो तो भी इसके नौ सार- सूत्र को ही समझ लेना हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है
1. संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे - कौरव
2. आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो, आपकी विद्या, अस्त्र-शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा - कर्ण
3. संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे - अश्वत्थामा
4. कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े - भीष्म पितामह
5. संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है - दुर्योधन
6. अंध व्यक्ति - अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी विनाश की ओर ले जाती है - धृतराष्ट्र
7. यदि व्यक्ति के पास विद्या, विवेक से बँधी हो तो विजय अवश्य मिलती है - अर्जुन
8. हर कार्य में छल, कपट, व प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते - शकुनि
9. यदि आप नीति, धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे, तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती - युधिष्ठिर
श्रीं कृष्णं कृष्णाय नम : 🙏🌹 🌿 🌾 🚩
 वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""
दौलत की भूख ऐसी लगी की कमाने निकल गए 
ओर जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए 
बच्चो के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी 
ओर जब फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए 
         
वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""
जिंदगी की आधी उम्र तक पैसा कमाया*
पैसा कमाने में इस शरीर को खराब किया 
बाकी आधी उम्र उसी पैसे को 
शरीर ठीक करने में लगाया 
ओर अंत मे क्या हुआ 
ना शरीर बचा ना ही पैसा 
        
वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""

वाह रे जिंदगी
             ""”"""""""""""""""'""""
शमशान के बाहर लिखा था 
मंजिल तो तेरी ये ही थी 
बस जिंदगी बित गई आते आते 
क्या मिला तुझे इस दुनिया से 
 अपनो ने ही जला दिया तुझे जाते जाते 
         
   वाह  रे जिंदगी
                 ""”"""""""""""""""'"
 ✤ *विचारों का प्रभाव* ✤
✦ जहां पर अग्नि जलती है वहां तीन प्रकार का प्रभाव होता है। एक तो धुआँ बनता है जो वायुमंडल में फैलता है, दूसरा आस पास के वातारण को गरमाहट मिलती है, रोशनी फैलती है तथा जिस पदार्थ से अग्नि जल रही है वह वस्तु नष्ट हो रही है या परिवर्तन हो रही है।
✦ ऐसे ही हमारे सभी विचार जाने अनजाने जो भी हमारे मन में चलते है वह सात प्रकार से प्रभावित करते हैं.....
*1)* जिस व्यक्ति, वस्तु व लक्ष्य के बारे में हम सोचते हैं, हमारे विचार उन्हें प्रभावित करते हैं।
*2)* हमारे सभी विचार हमारे सूक्ष्म संस्कारों में रिकाॅर्ड होते रहते हैं।
*3)* हमारे विचारों से हमारा स्थूल शरीर भी प्रभावित होता है। हमारा शरीर और कुछ नही सिर्फ विचारों का स्थूल रुप है। हर संकल्प तरल रुप में परिवर्तित होता रहता है। यह जो हमारे मुख में थूक बनती है यह भी हमारे विचारो का स्थूल रुप है। अगर हम बुरे विचार करते है तो शरीर बीमारी के रुप से नष्ट होता है। अगर अच्छे विचार करते है तो शरीर हृष्ट पुष्ट बनता है।
*4)* हमारे जो सब से नज़दीक भाई-बहने या सगे संबधी हैं, चाहे घर मे हैं या बाहर, वे भी हमारे विचारों से प्रभावित होते हैं।
*5)* हमारे विचार उनको भी प्रभावित करते हैं जिनके हम पूर्वज रहे हैं। पूरे 84 जन्मों में जो हमारे माँ-बाप थे, सास-ससुर, पति- पत्नी या बेटा - बेटी थे उनके हम पूर्वज कहलाते हैं। वे लोग चाहे अब कहीं भी भिन्न-भिन्न जन्मों में हैं और हम नहीँ जानते वे कहां हैं तो भी हमारा हर संकल्प अनजाने में उनको भी पहुँचता हैं और वह उसी अनुसार प्रेरित होते हैं।
*6)* जिन लोगो के हम मुखिया हैं जैसे परिवार, समूह, संघ, ऑफिस, दुकान, व्यापार, टीचर, प्रशासक, नेता, मालिक, कर्मचारी, पुजारी वा संस्था के मुखिया रुप में कहीं ना कहीं वे सब लोग भी हमारे विचारों से प्रभावित होते हैं।
*7)* हमारे वर्तमान परिवार के लोगो पर हमारे विचारों का तुरंत प्रभाव पड़ता है। जिसे हम शांति व आशांति के रुप में महसूस करते हैं।
✦ अभी संसार नहीं बदल रहा है तो उसका कारण और कुछ नहीं सिर्फ यही है कि हम मन से नहीं बदले हैं। हम सिर्फ बोलते अच्छा है मन से वैसे नहीं हैं इसलिये लोग भी बोलते अच्छा है और करते उल्टा है।
✦ एक टीचर स्कूल में बच्चों को बीड़ी ना पीने का प्रचार करता था। उसका सारे स्कूल में बहुत मान था। एक दिन उसने देखा कि कुछ बच्चे छिप कर बीड़िया पी रहे थे। वह दुखी था परंतु गहराई से सोचने पर उस ने पाया कि वे खुद छिप कर बीड़ी पीते थे।
✦ याद रखें कि आपका जीवन औरों के लिए प्रेरणा दायक है। लोग वह बनते है जो आप वास्तव में है, ना कि वह जो आप बोलते वा सिखाते हैं। आपके नकारात्मक संस्कार भी सभी पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यदि आप डरपोक है, आलसी है, स्वार्थी है, पक्षपाती है या फिर केवल प्रचारक हैं योगी नही, क्रोधी है शांत नही, ईर्ष्यालु हैं स्नेही वा सहयोगी नही है, तो आपको मानने वाले वही बनेंगे जो आप वास्तव में हैं...चाहे आप कितना भी स्वयं को छिपा लें।
✦ इसलिए अपने मूल गुणों शांति, प्रेम, सुख, आनद के संकल्पों में रहिए क्योंकि बिना जाने भी लोग आपके विचारों के माध्यम से आप से प्रभावित हो रहे हैं। आपके शुद्ध सात्विक विचारों की खुशबू सारे वातावरण को महकाती है। यह भी महान सेवा है।
 एक बाप अपनी बेटी के लिए  वर  खोजता है
जहाँ सुकून मिले जिंदगी भर का वो दर खोजता है।
एक बाप अपनी बेटी के लिए........।
जो पढ़ लिया होता है एम बीए पास
वो तो हो जाता है दुनिया के लिए खास
जहाँ लगे दहेज कम ऐसा घर ढूढता है ।
एक बाप अपनी बेटी के......।
जिस घर मे एक भी नौकरी है सरकारी
वहाँ होती है दहेज की लम्बी लिस्ट जारी
उस घर का लड़का पैसा वाला ससुर ढूढता है
एक बाप अपनी बेटी.......।
जिस लड़की को पाला पोसा जिसका किया जतन
कैसे सौप दू ऐ बेटी  उस दुनिया को जो ओढ़े है दहेज का कफ़न
इसी कसमकस में है बाप देखो अब ज़हर ढूढता है
एक बाप अपनी बेटी के लिए वर  खोजता है।।

 👌🏽👌🏽यही सत्य है 👌🏽👌🏽


*कंद-मूल खाने वालों से*

मांसाहारी डरते थे।।


*पोरस जैसे शूर-वीर को*

नमन 'सिकंदर' करते थे॥


*चौदह वर्षों तक खूंखारी* 

वन में जिसका धाम था।।


*मन-मन्दिर में बसने वाला* 

शाकाहारी *राम* था।।


*चाहते तो खा सकते थे वो* 

मांस पशु के ढेरो में।।


लेकिन उनको प्यार मिला

' *शबरी' के जूठे बेरो में*॥


*चक्र सुदर्शन धारी थे*

*गोवर्धन पर भारी थे*॥


*मुरली से वश करने वाले*

*गिरधर' शाकाहारी थे*॥


*पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम*

चोटी पर फहराया था।।


*निर्धन की कुटिया में जाकर* 

जिसने मान बढाया था॥


*सपने जिसने देखे थे*

मानवता के विस्तार के।।


*नानक जैसे महा-संत थे*

वाचक शाकाहार के॥


*उठो जरा तुम पढ़ कर देखो* 

गौरवमय इतिहास को।।


*आदम से आदी तक फैले*

इस नीले आकाश को॥


*दया की आँखे खोल देख लो*

पशु के करुण क्रंदन को।।


*इंसानों का जिस्म बना है*

शाकाहारी भोजन को॥


*अंग लाश के खा जाए*

क्या फ़िर भी वो इंसान है?


*पेट तुम्हारा मुर्दाघर है*

या कोई कब्रिस्तान है?


*आँखे कितना रोती हैं जब* 

उंगली अपनी जलती है


*सोचो उस तड़पन की हद*                    

जब जिस्म पे आरी चलती है॥


*बेबसता तुम पशु की देखो* 

बचने के आसार नही।।


*जीते जी तन काटा जाए*,

उस पीडा का पार नही॥


*खाने से पहले बिरयानी*,

चीख जीव की सुन लेते।।


*करुणा के वश होकर तुम भी*

गिरी गिरनार को चुन लेते॥


*शाकाहारी बनो*...!


 *❤️ पिता पुत्री के संबंध❤️*
❤️बटी की विदाई के वक्त बाप ही सबसे आखिरी में रोता है क्यों, चलिए आज आपको विस्तार से बताता हूं ।।
बाकी सब भावुकता में रोते हैं, पर बाप उस बेटी के बचपन से विदाई तक के बीते हुए पलों को याद कर कर के रोता है।। 
❇️माँ बेटी के रिश्तों पर तो बात होती ही है, पर बाप ओर बेटी का रिश्ता भी समुद्र से गहरा है ।।हर बाप घर के बेटे को गाली देता है, धमकाता है, मारता है, पर वही बाप अपनी बेटी की हर गलती को नकली दादागिरी दिखाते हुए नजर अंदाज कर देता है ।। 
❇️बटे ने कुछ मांगा तो एक बार डांट देता है पर बेटी ने धीरे से भी कुछ मांगा तो बाप को सुनाई दे जाता है, और जेब मे हो न हो पर बेटी की इच्छा पूरी कर देता है ।।दुनिया उस बाप का सब कुछ लूट ले, तो भी वो हार नही मानता पर अपनी बेटी के आंख के आंसू देख कर खुद अंदर से बिखर जाए उसे बाप कहते हैं ।।
❇️और बेटी भी जब घर मे रहती है तो उसे हर बात में बाप का घमंड होता है, किसी ने कुछ कहा नहीं कि वो बेटी तपाक से बोलती है, पापा को आने दे फिर बताती हूं ।।बेटी घर मे रहती तो माँ के आंचल में है,पर बेटी की हिम्मत उसका बाप रहता है ।।
❇️बटी की जब शादी में विदाई होती है तब वो सबसे मिलकर रोती तो है पर जैसे ही विदाई के वक्त कुर्सी समेटते बाप को देखती है, जाकर झूम जाती है और लिपट जाती है और ऐसा कस के पकड़ती है अपने बाप को जैसे माँ अपने बेटे को, क्योंकि उस बच्ची को पता है ये बाप ही है जिसके दम पर मैने अपनी हर जिद पूरी की थी ।।
❇️खर बाप खुद रोता भी है और बेटी की पीठ ठोक कर फिर हिम्मत देता है, कि बेटा चार दिन बाद आ जाऊँगा तुझको लेने और खुद जान बूझकर निकल जाता है किसी  कोने में और उस कोने में जाकर वो बाप कितना फूट फूट कर रोता है, ये बात सिर्फ एक बेटी का बाप ही समझ सकता है ।।
❇️जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है और घर मे भी जिद कर लेती है और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है कि मेरे बाप का घर है, पर जैसे ही बाप मरता है ओर बेटी आती है तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि, सारे रिश्तेदार समझ जाते है कि बेटी आ गई है ।।
❇️और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उसकी वो हिम्मत भी मर जाती हैं ।।  बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई के घर जिद नही करती है, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था तब तक सब कुछ उसका था यह बात वो अच्छी तरह से जानती है ।।
🙏🙏आगे लिखने की हिम्मत नही है, बस इतना ही कहना चाहती  हूं कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नही, और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है ।।
बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा है....
 "बैकुंठ चतुर्दशी"
पौराणिक मतानुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आये। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर के उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया।
भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हजार कमल पुष्प चढाने थे। एक पुष्प की कमी देख कर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के समान ही हैं। मुझे 'कमलनयन' और 'पुण्डरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढाने को तत्पर हुए तभी विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न हो कर देवाधिदेव महादेव प्रगट हो कर बोले - 'हे विष्णु! तुम्हारे समान जगत में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रतपूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
भगवान शिव ने इसी बैकुंठ चतुर्दशी को कोटि सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र विष्णु जी को प्रदान किया।
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु सृष्टि की सत्ता का कार्यभार भगवान शिव को सौंप कर पाताल लोक के राजा बलि के यहां विश्राम करने जाते हैं, इसलिए इन दिनों में शुभ कार्य नहीं होते। इस समय सत्ता शिव के पास होती है एवं बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव यह सत्ता भगवान विष्णु को सौंप कर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए लौट जाते हैं। जब सत्ता भगवान विष्णु जी के पास आती है तो सृष्टि के कार्य आरंभ हो जाते हैं। इसी दिन को बैकुंठ चतुर्दशी या हरि-हर मिलन कहते हैं।
                                             
                        🌷जय श्री हरिहर।🌷🙏
 तुलसी विवाह
एकादशी के दिन तुलसी विवाह  की परंपरा रही है। माता तुलसी की सालिग्राम जी से विवाह की जाती है। कई घरों में इस दिन एक दम विवाह जैसा माहौल रहता है। अगर आपके घर में भी तुलसी पैधा है तो आप आज तुलसी विवाह करके सुख-समृद्धि में वृद्धि कर सकती हैं। कहा जाता है कि जिनके विवाह में देरी हो रही है या जो योग्य वर और वधू चाहते हैं इस दिन विधि विधान से पूजा करें। तो आइए जानते हैं कैसे करें तुलसी विवाह
शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
* तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
* तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
* तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
* गमले में सालिग्राम जी रखें। अगर सालिग्राम नहीं है तो भगवान विष्णु की फोटो भी रख सकती हैं।
* सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
* तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
* गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।
* अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
* देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
* कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलसा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
* तुलसी माता पर प्रसाद चढ़ाएं।
* 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
* प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
* प्रसाद वितरण अवश्य करें।
* पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जा सकता है-
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
तुलसी के ये मंत्र
भगवान कृष्ण से साक्षात्कार
 हिन्दू धर्म में तुलसी का बड़ा ही महत्व है। इसे बड़ा पूजनीय माना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार तुलसी का नाम मात्र उच्चारण करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं। साथ ही मान्यता है कि जिस घर के आंगन में तुलसी होती हैं वहां कभी कोई कष्ट नहीं आता है। पुराणों के जानकारों की मानें तो तुलसी की पूजा से सीधे भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं। वे भक्तों की बात सुनते हैं। पद्मपुराण के अनुसार द्वादशी की रात को जागरण करते हुए तुलसी स्तोत्र को पढऩा चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु जातक के सभी अपराध क्षमा कर देते हैं। तुलसी महिमा को सुनने से भी समान पुण्य मिलता है।
तुलसी पूजा के मंत्र
तुलसी जी को जल चढाने का मंत्र 
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
तुलसी जी का ध्यान मन्त्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
धन-संपदा, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति के लिए तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए
ॐ सुभद्राय नमः 
ॐ सुप्रभाय नमः
- मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
यदि आपके आंगन में है तुलसी तो आप एक खास मंत्र के जरिए और आत्मविश्वासी हो सकते हैं। यह गायत्री मंत्र, जो तुलसी पूजन में उपयुक्त होता है
ऊँ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।
ये है पूजन विधि
– सुबह स्नान के बाद घर के आंगन या देवालय में लगे तुलसी के पौधे की गंध, फूल, लाल वस्त्र चढ़ाकर पूजा करें। फल का भोग लगाएं।
– धूप व दीप जलाकर उसके नजदीक बैठकर तुलसी की ही माला से तुलसी गायत्री मंत्र का श्रद्धा से, सुख की कामना से 108 बार स्मरण करें। तब अंत में तुलसी की पूजा करें ।
– पूजा व मंत्र जप में हुई त्रुटि की प्रार्थना आरती के बाद कर फल का प्रसाद ग्रहण करें।
– संध्या समय तुलसी के पास दीपक प्रज्वलित अवश्य ही करना चाहिए। इससे सदैव घर में सुख शांति का वातावरण बना रहता है।
तुलसी जी के अन्य नाम और उनके अर्थ
वृंदा - सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
वृन्दावनी - जिनका उद्भव व्रज में हुआ
विश्वपूजिता - समस्त जगत द्वारा पूजित
विश्व
 सबसे_कीमती_चीज
एक जाने-माने स्पीकर ने हाथ में पांच सौ का नोट लहराते हुए अपनी सेमीनार शुरू की. हाल में बैठे सैकड़ों लोगों से उसने पूछा ,” ये पांच सौ का नोट कौन लेना चाहता है?” हाथ उठना शुरू हो गए.
फिर उसने कहा ,” मैं इस नोट को आपमें से किसी एक को दूंगा पर  उससे पहले मुझे ये कर लेने दीजिये .” 
और उसने नोट को अपनी मुट्ठी में चिमोड़ना शुरू कर दिया. और  फिर उसने पूछा,” कौन है जो अब भी यह नोट लेना चाहता है?” अभी भी लोगों के हाथ उठने शुरू हो गए.
“अच्छा” उसने कहा,” अगर मैं ये कर दूं ? ” और उसने नोट को नीचे गिराकर पैरों से कुचलना शुरू कर दिया. उसने नोट उठाई , वह बिल्कुल चिमुड़ी और गन्दी हो गयी थी.
” क्या अभी भी कोई है जो इसे लेना चाहता है?”. और एक  बार  फिर हाथ उठने शुरू हो गए.
” दोस्तों  , आप लोगों ने आज एक बहुत महत्त्वपूर्ण पाठ सीखा है. मैंने इस नोट के साथ इतना कुछ किया पर फिर भी आप इसे लेना चाहते थे क्योंकि ये सब होने के बावजूद नोट की कीमत घटी नहीं,उसका मूल्य अभी भी 500 था.
जीवन में कई बार हम गिरते हैं, हारते हैं, हमारे लिए हुए निर्णय हमें मिटटी में मिला देते हैं. हमें ऐसा लगने लगता है कि हमारी कोई कीमत नहीं है.
 लेकिन आपके साथ चाहे जो हुआ हो या भविष्य में जो हो जाए , आपका मूल्य कम नहीं होता. आप स्पेशल हैं, इस बात को कभी मत भूलिए.
कभी भी बीते हुए कल की निराशा को आने वाले कल के सपनो को बर्बाद मत करने दीजिये. याद रखिये आपके पास जो सबसे कीमती चीज है, वो है आपका जीवन.
 तो साथियों आप आपकी ज़िंदगी के मालिक आप ही हो इस जिंदगी की कीमत भी आपको ही समझनी है
 अवसर
एक बार एक ग्राहक चित्रो की दुकान पर गया। 
उसने वहाँ पर अजीब से चित्र देखे। 
पहले चित्र मे चेहरा पूरी तरह बालो से ढँका हुआ था और पैरोँ मे पंख थे। 
एक दूसरे चित्र मे सिर पीछे से गंजा था। 

ग्राहक ने पूछा- "यह चित्र किसका है?" दुकानदार ने कहा- "अवसर का।
ग्राहक ने पूछा- "इसका चेहरा बालो से ढका क्यो है?" 
दुकानदार ने कहा- "क्योंकि अक्सर जब अवसर 
आता है तो मनुष्य उसे पहचानता नही है।
ग्राहक ने पूछा-और इसके पैरो मे पंख क्यो है?" 

दुकानदार ने कहा- "वह इसलिये कि यह तुरंत वापस भाग जाता है, यदि इसका उपयोग न हो तो यह तुरंत उड़ जाता है।" 
ग्राहक ने पूछा- "और यह दूसरे चित्र मे पीछे से गंजा सिर किसका है?" 
दुकानदार ने कहा- "यह भी अवसर का है। 
यदि अवसर को सामने से ही बालो से पकड़ लेँगे तो वह आपका है। 
 आपने उसे थोड़ी देरी से पकड़ने की कोशिश की तो पीछे का गंजा सिर हाथ आयेगा और वो फिसलकर निकल जायेगा।"
वह ग्राहक इन चित्रो का रहस्य जानकर हैरान था पर अब वह बात समझ चुका था। 
आपने कई बार दूसरो को ये कहते हुए सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि 'हमे अवसर ही नही मिला लेकिन ये अपनी जिम्मेदारी से भागने और अपनी गलती को छुपाने का बस एक बहाना है।
सन्तमत विचार-भगवान ने हमे ढेरो अवसरो के बीच जन्म दिया है। 
अवसर हमेशा हमारे सामने से आते जाते रहते है पर हम उसे पहचान नही पाते या पहचानने मे देर कर देते है। 
और कई बार हम सिर्फ इसलिये चूक जाते है क्योकि हम बड़े अवसर के ताक मे रहते हैं। 
पर अवसर बड़ा या छोटा नही होता है। हमे हर अवसर का भरपूर उपयोग करना चाहिये!
 🌹जीवन के 5 सत्य:-🌹
1. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने खूबसूरत हैं क्योंकि..लँगूर और गोरिल्ला भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं..
2. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर कितना विशाल और मज़बूत है क्योंकि...श्मशान तक आप अपने आपको नहीं ले जा सकते....
3. आप कितने भी लम्बे क्यों न हों मगर आने वाले कल को आप नहीं देख सकते....
4. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी त्वचा कितनी गोरी और चमकदार है क्योंकि...अँधेरे में रोशनी की जरूरत पड़ती ही है...
5. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने अमीर हैं और दर्जनों गाड़ियाँ आपके पास है क्योंकि...घर के बाथरूम तक आपको चल के ही जाना पड़ेगा...
 इसलिए संभल के चलिए ...
 👌अनमोल👌
💥 “ये बिल क्या होता है माँ ?” 
       8 साल के बेटे ने माँ से पूछा।
💥 माँ ने समझाया -- “जब हम किसी से कोई सामान 
     लेते हैं या काम कराते हैं, तो वह उस सामान या काम
     के बदले हम से पैसे लेता है, और हमें उस काम या
     सामान की एक सूची बना कर देता है, 
     इसी को हम बिल कहते हैं।”
💥 लड़के को बात अच्छी तरह समझ में आ गयी। 
      रात को सोने से पहले, उसने माँ के तकिये के नीचे 
      एक कागज़ रखा, 
      जिस में उस दिन का हिसाब लिखा था।
💥 पास की दूकान से सामान लाया             5रु 
      पापा की bike पोंछकर बाहर निकाली।  5 रु 
      दादाजी का सर दबाया                         10 रु 
      माँ की चाभी ढूंढी                                10 रु
      कुल योग                                           30 रु 
💥 यह सिर्फ आज का बिल है , 
      इसे आज ही चुकता कर दे तो अच्छा है।
 💥 सबह जब वह उठा तो उसके तकिये के नीचे 30 रु.   
      रखे थे। यह देख कर वह बहुत खुश हुआ 
      कि ये बढ़िया काम मिल गया।
💥 तभी उस ने एक और कागज़ वहीं रखा देखा।
      जल्दी से उठा कर, उसने कागज़ को पढ़ा। 
      माँ ने लिखा था --
😘 जन्म से अब तक पालना पोसना --       रु 00
💥बीमार होने पर रात रात भर 
      छाती से लगाये घूमना --                     रु 00
😘 सकूल भेजना और घर पर 
       होम वर्क कराना  --                          रु 00
💥 सबह से रात तक खिलाना, पिलाना, 
      कपड़े सिलाना, प्रेस करना --               रु 00 
💥 अधिक तर मांगे पूरी करना --              रु 00
      कुल योग                                         रु 00 
💥 य अभी तक का पूरा बिल है, 
      इसे जब चुकता करना चाहो कर देना।
💥 लड़के की आँखे भर आईं
      सीधा जा कर माँ के पैरों में झुक गया
      और मुश्किल से बोल पाया --
     “तेरे बिल में मोल तो लिखा ही नहीं है माँ,
      ये तो अनमोल है,"
      इसे चुकता करने लायक धन तो
      मेरे पास कभी भी नहीं होगा। 
      मुझे माफ़ कर देना , माँ।“

👌माँ ने," हँसते हुए" उसे गले से लगा लिया ।
💥  बच्चों को ज़रूर पढ़ायें यह मेरा निवेदन है ......
       भले ही आपके बच्चे माँ बाप बन गए हो ।🚩👍
 *एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये | दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे |*
*सन्यासी ने  एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए* *दुकानदार" से पूछा, "इसमें क्या है?"*
*दुकानदार ने कहा, "इसमें नमक है।"*
*सन्यासी ने फिर पूछा, "इसके* *पास वाले में क्या है ?"*
*दुकानदार ने कहा, "इसमें हल्दी है।"*
*इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।*
*अंत मे पीछे रखे डिब्बे का नंबर आया, सन्यासी ने पूछा,* *"उस अंतिम डिब्बे में क्या है?"*
*दुकानदार बोला, "उसमें श्रीकृष्ण हैं।"*
*सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, "श्रीकृष्ण !! भला यह* *"श्रीकृष्ण" किस वस्तु का नाम है भाई? मैंने तो इस नाम के* *किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !"*
*दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला,* *"महात्मन ! और डिब्बों मे तो* *भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं | पर यह* *डिब्बा खाली है| हम खाली को खाली नहीं कहकर* *श्रीकृष्ण कहते हैं !"*
 
*संन्यासी की आंखें खुली की* *खुली रह गई ! जिस बात के* *लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो बात मुझे आज एक व्यापारी से समझ आ रही है।* *वो सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों* *में गिर पड़ा, ओह, तो खाली में श्रीकृष्ण रहता है !*
 *सत्य है ! भरे हुए में श्रीकृष्ण को स्थान कहाँ ?*
*काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब दिल-दिमाग भरा रहेगा तो उसमें ईश्वर का वास कैसे होगा ?*
हरे कृष्ण😊🙏
 महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद कृष्ण और भीष्म पितामह की अंतिम वार्ता👇

भीष्म बोले, "एक बात बताओ कन्हैया! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या?"

- "किसकी ओर से पितामह? पांडवों की ओर से?"

- "कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तो अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया, पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था? आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती का चीरा जाना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध, सब ठीक था क्या? यह सब उचित था क्या?"

- इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह! इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया। उत्तर दें दुर्योधन का वध करने वाले भीम, उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन, मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह!

- "अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण? अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है, पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है। मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा

कृष्ण!" - "तो सुनिए पितामह! कुछ बुरा नहीं हुआ, कुछ अनैतिक नहीं हुआ। वही हुआ जो होना चाहिए था।"

- " यह तुम कह रहे हो केशव? मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है? यह क्षल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा, फिर यह उचित कैसे हो गया? "

- "इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह, पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर ही लेना पड़ता है। हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकताओं के आधार पर अपना नायक चुनता है। राम त्रेता युग के नायक थे, मेरे भाग में द्वापर आया था। एक ही परिस्थिति में हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह।"

-" नहीं समझ पाया कृष्ण! तनिक समझाओ तो..."

-" राम और कृष्ण के काल खण्डों की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह! राम के युग में खलनायक भी 'रावण' जैसा शिवभक्त होता था। तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण और कुम्भकर्ण जैसे सन्त हुआ करते थे। तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे।

उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था। इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया।

किंतु मेरे द्वापर युग के इस भाग में में कंस, जरासन्ध, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनी, जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं। उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह। पाप का अंत आवश्यक है पितामह, वह चाहे जिस विधि से भी हो।"

- "तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव? क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा? और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा?"

-" भविष्य तो इससे भी और अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह। कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा। वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा, नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा।

जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह! तब महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय। भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह।"

-"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव? और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है?"

-"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह! ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता, सब मनुष्य को ही करना पड़ता है।"

"आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न! तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या? सब पांडवों को ही करना पड़ा न? यही प्रकृति का संविधान है। युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से। यही परम सत्य है।"

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे। उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी। उन्होंने कहा- "चलो कृष्ण! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है, कल सम्भवतः चले जाना हो... अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण!"

कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था

जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है।


आत्महत्या




जिंदगी का हाथ छोड़कर तुमने

मौत को गले लगा लिया

ऐसा भी क्या था?

जो तुमने खुद की सांसो से दामन छुड़ा लिया

मुश्किलें आती हैं और परख कर चली जाती है

काश तुम समझ पाते सांसे जो रुक जाती हैं

वो वापस नहीं आती है।

तुम्हें ऐसा लगता है

तुमने खुद की की जान ली है,

अपनी सांसे तो मान ली तुमने

पर जाते-जाते कितनों की जिंदगी

वीरान की है तुमने।

वो बूढ़ा पिता जो तुमने अपने कल को देखा करता था

वो आज अपने जिंदगी हर पल को कोसा करता है।

वो मां जो अपने आंचल से तेरा मुखड़ा पोछा करती थी!

आज वो निशब्द चौखट को देखा करती है।

सांसे तो तेरी ही रुकी लेकिन

अब तेरी मां भी कहां जिंदा जिया करती है।

वो घटना जो उसके घर के चिराग को ले गई

रो-रो कर मां उसे

आत्महत्या कहां करती है !

 People are often unreasonable, illogical and self-centered;

FORGIVE THEM ANYWAY.🦋


If you are kind, people will accuse you of selfish motives;

BE KIND ANYWAY.🦋


If you are successful, you will win some false friends and some true enemies;

SUCCEED ANYWAY.🦋


If you are honest and sincere, people may deceive you;

BE HONEST AND SINCERE ANYWAY.


What you spend years building, someone could destroy overnight;

BUILD ANYWAY.🦋


If you find serenity and happiness, they may be jealous;

BE HAPPY ANYWAY.🦋


The good you do today, people will often forget tomorrow;

DO GOOD ANYWAY.🦋


Give the world the best you have and it may never be enough;

GIVE THEM YOUR BEST ANYWAY.🦋


In the final analysis, it is between you and God;

IT WAS NEVER BETWEEN YOU AND THEM ANYWAY.

 💧 BHAGAWAT GEETA 

🍥 Beautiful   Message !


💬   Stay   Away   From   Anger... It   Hurts ....Only   You !


💬   If    You    Are    Right    Then     There    is     No    Need    to    Get    Angry ...


💬   And    If    You    Are    Wrong    Then    You     Don't     Have    Any    Right    to    Get    Angry.


💬   Patience    With    Family    is   Love .....


💬   Patience    With    Others    is   Respect.


💬   Patience     With     Self     is   Confidence   And   Patience   With   GOD   is   Faith.


💬   Never    Think    Hard    About    The    PAST ,    It    Brings    Tears...


💬   Don't    Think    More    About   The   FUTURE ,   It   Brings   Fear...


💬  Live   This   Moment   With   A   Smile ,  It    Brings   Cheer.


💬  Every     Test     in    Our    Life   Makes   Us   Bitter   Or   Better .....


💬   Every   Problem   Comes   To   Make   Us   Or   Break   Us  !


💬   The      Choice     is       Ours   Whether   We   Become   Victims   Or   Victorious.


💬   Beautiful   Things    Are    Not   Always   Good   But   Good  Things   Are   Always   Beautiful ......


💬   Do   You   Know    Why    God  Created   Gaps  between  Fingers ?  So     That     Someone ,    Who    is     Special    To    You ,   Comes    And   Fills   Those    Gaps ,   By   Holding   Your   Hand   Forever.


💬   " Happiness "   Keeps   You ....  Sweet   But   Being   Sweet   Brings   Happiness.


🛡️ 🛡️

💢 *(The way to success)*💢

 फ़िक्र उसकी करो जो क़रीब है,

दूर की चीज़ों का ज़िक्र भुलाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर,

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

काँटें तो तय हैं ही सफ़र में

उन्हें फूलों की तरह सजाना होगा,

चेहरे पर एक लेकर मुस्कान

ग़मों से रिश्ता मिटाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

तेरी ख़ामोशियों को मिटा कर

तुझे तेरे शोर को बढ़ाना होगा,

शब्दों की क़ायनात का हुनर

अब दुनिया को दिखाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

नहीं बनना है तुझे कोई भीड़

तेरे अन्दर भी एक ज़माना होगा,

तू कर यक़ीन एक ख़ुद पर भी

तुझे नहीं ख़ुद को आज़माना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

वक़्त को मानकर तेरा हमसफ़र

तुझे क़दम से क़दम मिलाना होगा,

तेरे पल पल को समेटकर बना

तेरा ख़ुद का एक आशियाना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

खुल कर साँसें लेने के लिए

तुझे तेरे हर डर को हराना होगा,

कर एक ज़िद तू आँसुओं से भी

कि रो कर भी तुझे मुसकुराना होगा !

कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

जो जुड़ा है सिर्फ़ तुझसे ही

उसे तो तुझे मिल ही जाना होगा,

खड़ी होगी मौत जब बाँहें फैलाकर

न चाहते हुए भी तुझे जाना होगा !

इसलिए कल को ख़ुदा पर छोड़ कर;

पहले तुझे तेरे आज को बनाना होगा !!

 ^🌈परेरणादायक प्रसंग-शिक्षा का निचोड़🌈^^^

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काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा... "गुरुवर! शिक्षा का निचोड़ क्या है? संत ने मुस्करा कर कहा..."एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।" कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा... "वत्स! इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।" शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा... "क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?" शिष्य ने कहा... "गुरुवर! कमरे में सांप है।" संत ने कहा... "यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।" शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला... "सांप वहां से जा नहीं रहा है।" संत ने कहा... "इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।" शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा... "गुरुवर! वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।" संत ने कहा... "वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है। यही शिक्षा का निचोड़ है।" वास्तव में अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रमजाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश निरंतर स्वाध्याय और ज्ञानार्जन से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।

 तुम और वो लड़की रात के तीसरे पहर चैट कर रहे हो।   

बात करते करते तुम्हे कामुकता का अहसास होता है। 

तुम बिना सोचे बिना एक पल गवाए उससे एक न्यूड फोटो की मांग कर देते हो। 

वो कहती है की वो नहीं दे सकती। 

तुम अपने जिद्द पर अड़े रहते हो। 

वो तुम्हे समझाने की कोशिश करती है। 

तुम उसे तुमपर यकींन करने को कहते हो। 

वो कहती है शादी के बाद देख लेना वो तुम्हारी ही तो है। 

तुम फिर भी नहीं मानते। 


फिर वो तुम्हे वेट करने को कहती है। 

तुम बड़े सब्र से इंतज़ार करते हो। 

फिर वो तस्वीरें भेज देती है। 

तुम खुश हो जाते हो। 

तुम उसे देख कर थोड़ी देर के हस्थमैथुन के बाद शांत हो जाते हो। 

अब वो तस्वीरें तुम्हे भद्दी लगने लगती है। 

फिर तुम अपने दोस्तों में रोब ज़माने के लिए उसकी तस्वीरें अपने दोस्तों को भेजते हो ये कह कर की वो देख कर डिलीट कर देंगे। लेकिन उनमे से कोई उसे कही और फॉरवर्ड कर देता है। फिर वो एक ऐसे हाथो में पहुँचता है जो उसे शोशल साइट पर उपलोड कर देता है  

और तो और वो उसे टैग भी कर देता है।  

वो उन तस्वीरों को देखती है। 

तुम्हे मैसेज करती है और मिन्नतें करती है और डिलीट करने को कहती है। लेकिन तुम कहते हो की ये तुमने नहीं किया है। 

वो फिर कहती है की तुम डिलीट कर दोगे तो वो तुम्हे और सारी तस्वीरें देगी। 

तुम कहते हो की तुम्हे नहीं पता की वो तस्वीरें कैसे लीक हो गयी।  

 लोग अब उन तस्वीरों को लाइक और रियेक्ट करना शुरू करते है। 

कुछ लोग गंदे कमेंट करते है ,कुछ बचाव करते है ,कुछ देख के उदास होते है,कुछ देख के हसंने लगते है। 

उस लड़की की सहेलिया अब उसकी न्यूड तस्वीर देखती है ,कुछ हताश हो जाती है कुछ को बेहद ख़ुशी मिलती है। 

कुछ उसके बचाव में कुछ कहती है लेकिन क्या फायदा लोग उसे देख चुके थे। 

कुछ लोग उन तस्वीरों को शेयर कर देते है तो कुछ सेव कर लेते है तो कुछ उस लोग उसके रिलेटिव को फॉरवर्ड कर देते है। 


अगले दिन वो स्कूल जाती है। 

उसे देख कर उसके ही साथी फब्तियां कसना शुरू करते है। 

क्लास टीचर ने खड़ा हो कर सब कुछ क्लास के सामने ही बताने का आर्डर दे डाला है उसे अब। 

लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं निकल रहे। 


आखिर में उसे प्रिंसिपल ऑफिस में सारे टीचरों के सामने लाया जाता है जहा वो सुन्न खड़ी है। 

आखिर में उसके पेरेंट्स को बुलाया जाता है ,माँ बाप हाथ जोड़ते है लेकिन प्रिंसिपल को अपने स्कूल की इज्जत प्यारी है ,और इन बैठकों का रिजल्ट ये निकला की उसे स्कूल से निकाल दिया गया। 


वो घर आयी ,और पहला काम ये हुआ की उसे जी भर कर पीटा गया ,पहले बाप ने पीटा फिर उसी भाई ने उन्ही हाथों से मुक्के बरसाए जिसपर उसने राखी बाँधी थी। 

उसका फ़ोन छीन लिया गया ,उसकी जिंदगी अब लगभग बर्बाद हो चुकी थी। 

उसने कई दिनों तक कमरे में खुद को बंद रखने के बाद बाहर निकलने की सोची। 

बाहर लोग उसे देख कर इशारे करने लगे थे ,उनकी फुसफुसाहट उसके कानो में गूंज की तरह थी। 

वो घर वापस आ गयी। 

बहुत सोचा उसने ,बहुत हिम्मत जुटाई मगर ख़ुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आया। 

शायद यही उसे अब आराम दे सकता था। 

उसने चूहे मारने की दवा ढुंढी और बिना एक पल गवाए गले में उतार लिया ,दस मिनट के अंदर वो इस दुनिया से निकल चुकी थी। 


उसके माँ बाप ने उसके रूम का दरवाजा खटखटाया मगर कोई जवाब नहीं मिला। जब जवाब कुछ देर तक नहीं आया तो दरवाजा तोड़ा गया ,वो पलंग के एक कोने में मरी पड़ी थी। 

उसकी लाश देख कर माँ बाप को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ की अभी जो लड़की चल फिर रही थी ,लाश बन चुकी है। 


रिलेटिव दोस्त सहेलियों  टीचर सबको ये खबर जल्द ही मिल गयी उस लड़के को भी। 

सभी को बुरा लगा उस लड़के को भी। 

उसे पछतावा हुआ वो रोने लगा और खुद को कोसने लगा लेकिन वक़्त मुड़कर  वापस कहा आता है। 

उसकी लाश सफेद कफ़न में सबके सामने रखी थी , जो उसे देख कर फब्तियां कस रहे थे ,सभी रो रहे थे .

लेकिन अब उसे फर्क नहीं पड़ने वाला कुछ , वो अब जा चुकी है। 


जिंदगी बिजली जैसी है ,आपका अपना भी इससे झटके दे सकता है। 

👍👍👍👍👍👍

 🌹 अतरात्मा की आवाज़ 🌹


एक दिन, एक गरीब किसान, एक व्यापारी जो उपरवाले का परम भक्त था, उसके पास अपनी जमीन बेचने गया और बोला, ''सेठजी, मेरी 2 एकड़ जमीन आप रख लो। ''


व्यापारी बोला, ''क्या कीमत है ?''


गरीब बोला, ''50 हजार रुपये। ''


व्यापारी थोड़ी देर सोच कर बोला, ''वो ही खेत जिसमें ट्यूबवेल लगा है ?''


गरीब, ''जी, आप मुझे 50 हजार से कुछ कम भी देंगे, तो जमीन आपको दे दूँगा। ''


व्यापारी ने आँखें बंद कीं, 5 मिनट सोच कर बोला, ''नहीं, मैं उसकी कीमत 2 लाख रुपये दूँगा। ''


गरीब, ''पर मैं तो 50 हजार मांग रहा हूँ, आप 2 लाख क्यों देना चाहते हैं ?''


व्यापारी बोला, ''तुम जमीन क्यों बेच रहे हो ?''


गरीब बोला, ''बेटी की शादी करनी है, इसीलिए मज़बूरी में बेचना है, पर आप 2 लाख क्यों दे रहे हैं ?''


व्यापारी बोला, ''मुझे जमीन खरीदनी है, किसी की मजबूरी नहीं। अगर आपकी जमीन की कीमत मुझे मालूम है तो मुझे आपकी मजबूरी का फायदा नहीं उठाना, मेरा ऊपरवाला कभी खुश नहीं होगा। ये मेरी अंतरात्मा की आवाज़ है। ''


ऐसी जमीन या कोई भी साधन, जो किसी की मजबूरियों को देख के खरीदा जाये, वो जिंदगी में सुख नहीं देता, आने वाली पीढ़ी मिट जाती है। 


व्यापारी ने कहा, ''मेरे मित्र, तुम खुशी खुशी, अपनी बेटी की शादी की तैयारी करो, 50 हजार की व्यवस्था हम गांव वाले मिलकर कर लेंगे, तेरी जमीन भी तेरी ही रहेगी। 

मेरे उपरवाले ने सदा ही हारे का साथ निभाया है तो मै किसी की भी मजबूरी का क्यूँ फायदा उठाऊं, देने वाला ऊपरवाला है, मेरा क्या है। ''


गरीब किसान दोनों हाथ जोड़कर, नीर भरी आँखों के साथ दुआयें देता चला गया।


शिक्षा :

दोस्तो, उपरवाले ने हमारे देश को हर प्रकार की वस्तु और अपार प्राकर्तिक सम्पदा से नवाज़ा है। लोग भोले-भाले और मेहनती हैं। दुनिया, हमारे युवाओं और उद्यमियों का लोहा मानती है। यदि हमारे नेता अंतरात्मा की आवाज़ सुन, निस्वार्थ सच्ची जनसेवा करते तो भारत कब का दुनिया का सबसे खुशहाल देश बन गया होता।


दोस्तो, किसी की मजबूरी न खरीदें। किसी के दर्द, मजबूरी को समझ कर, परोपकार करना ही सच्चा तीर्थ है, उपरवाले की सच्ची भक्ति की निशानी है।

 प्रारम्भ की कहानी-बेताल पच्चीसी 


बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उसके चार रानियाँ थीं। उनके छ: लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।


उस नगर में एक ब्राह्मण तपस्या करता था। एक दिन देवता ने प्रसन्न होकर उसे एक फल दिया और कहा कि इसे जो भी खायेगा, वह अमर हो जायेगा। ब्रह्मण ने वह फल लाकर अपनी पत्नी को दिया और देवता की बात भी बता दी। ब्राह्मणी बोली, “हम अमर होकर क्या करेंगे? हमेशा भीख माँगते रहेंगें। इससे तो मरना ही अच्छा है। तुम इस फल को ले जाकर राजा को दे आओ और बदले में कुछ धन ले आओ।”


यह सुनकर ब्राह्मण फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास गया और सारा हाल कह सुनाया। भर्तृहरि ने फल ले लिया और ब्राह्मण को एक लाख रुपये देकर विदा कर दिया। भर्तृहरि अपनी एक रानी को बहुत चाहता था। उसने महल में जाकर वह फल उसी को दे दिया। रानी की मित्रता शहर-कोतवाल से थी। उसने वह फल कोतवाल को दे दिया। कोतवाल एक वेश्या के पास जाया करता था। वह उस फल को उस वेश्या को दे आया। वेश्या ने सोचा कि यह फल तो राजा को खाना चाहिए। वह उसे लेकर राजा भर्तृहरि के पास गई और उसे दे दिया। भर्तृहरि ने उसे बहुत-सा धन दिया; लेकिन जब उसने फल को अच्छी तरह से देखा तो पहचान लिया। उसे बड़ी चोट लगी, पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं। उसने महल में जाकर रानी से पूछा कि तुमने उस फल का क्या किया। रानी ने कहा, “मैंने उसे खा लिया।” राजा ने वह फल निकालकर दिखा दिया। रानी घबरा गयी और उसने सारी बात सच-सच कह दी। भर्तृहरि ने पता लगाया तो उसे पूरी बात ठीक-ठीक मालूम हो गयी। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने सोचा, यह दुनिया माया-जाल है। इसमें अपना कोई नहीं। वह फल लेकर बाहर आया और उसे धुलवाकर स्वयं खा लिया। फिर राजपाट छोड, योगी का भेस बना, जंगल में तपस्या करने चला गया।


भर्तृहरि के जंगल में चले जाने से विक्रम की गद्दी सूनी हो गयी। जब राजा इन्द्र को यह समाचार मिला तो उन्होंने एक देव को धारा नगरी की रखवाली के लिए भेज दिया। वह रात-दिन वहीं रहने लगा।


भर्तृहरि के राजपाट छोड़कर वन में चले जाने की बात विक्रम को मालूम हुई तो वह लौटकर अपने देश में आया। आधी रात का समय था। जब वह नगर में घुसने लगा तो देव ने उसे रोका। राजा ने कहा, “मैं विक्रम हूँ। यह मेरा राज है। तुम रोकने वाले कौन होते होते?”

देव बोला, “मुझे राजा इन्द्र ने इस नगर की चौकसी के लिए भेजा है। तुम सच्चे राजा विक्रम हो तो आओ, पहले मुझसे लड़ो।”

दोनों में लड़ाई हुई। राजा ने ज़रा-सी देर में देव को पछाड़ दिया। तब देव बोला, “हे राजन्! तुमने मुझे हरा दिया। मैं तुम्हें जीवन-दान देता हूँ।”


इसके बाद देव ने कहा, “राजन्, एक नगर और एक नक्षत्र में तुम तीन आदमी पैदा हुए थे। तुमने राजा के घर में जन्म लिया, दूसरे ने तेली के और तीसरे ने कुम्हार के। तुम यहाँ का राज करते हो, तेली पाताल का राज करता था। कुम्हार ने योग साधकर तेली को मारकर शम्शान में पिशाच बना सिरस के पेड़ से लटका दिया है। अब वह तुम्हें मारने की फिराक में है। उससे सावधान रहना।”


इतना कहकर देव चला गया और राजा महल में आ गया। राजा को वापस आया देख सबको बड़ी खुशी हुई। नगर में आनन्द मनाया गया। राजा फिर राज करने लगा।


एक दिन की बात है कि शान्तिशील नाम का एक योगी राजा के पास दरबार में आया और उसे एक फल देकर चला गया। राजा को आशंका हुई कि देव ने जिस आदमी को बताया था, कहीं यह वही तो नहीं है! यह सोच उसने फल नहीं खाया, भण्डारी को दे दिया। योगी आता और राजा को एक फल दे जाता।


संयोग से एक दिन राजा अपना अस्तबल देखने गया था। योगी वहीं पहुँच और फल राजा के हाथ में दे दिया। राजा ने उसे उछाला तो वह हाथ से छूटकर धरती पर गिर पड़ा। उसी समय एक बन्दर ने झपटकर उसे उठा लिया और तोड़ डाला। उसमें से एक लाल निकला, जिसकी चमक से सबकी आँखें चौंधिया गयीं। राजा को बड़ा अचरज हुआ। उसने योगी से पूछा, “आप यह लाल मुझे रोज़ क्यों दे जाते हैं?”

योगी ने जवाब दिया, “महाराज! राजा, गुरु, ज्योतिषी, वैद्य और बेटी, इनके घर कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”


राजा ने भण्डारी को बुलाकर पीछे के सब फल मँगवाये। तुड़वाने पर सबमें से एक-एक लाल निकला। इतने लाल देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। उसने जौहरी को बुलवाकर उनका मूल्य पूछा। जौहरी बोला, “महाराज, 

Monday, January 25, 2021

 एक राजा के पास कई हाथी थे, 

लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी,समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। 


बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर वापस लौटा था, 

इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था। 


समय गुजरता गया  ...


और एक समय ऐसा भी आया, 

जब वह वृद्ध दिखने लगा। 

        

 अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था। इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।


 एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया। 


उस हाथी ने बहुत कोशिश की, 

लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।


 उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है। 


हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।

 

राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास इक्कठा हो गए और विभिन्न प्रकार के शारीरिक प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे। 


जब बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला तो राजा ने अपने सबसे अनुभवी मंत्री को बुलवाया।


 मंत्री ने आकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ। 


सुनने वालोँ को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा, जो अनेक व्यक्तियों के शारीरिक प्रयत्न से बाहर निकल नहीं पाया।


आश्चर्यजनक रूप से जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा। 


पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया। 


अब मंत्री ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।


☀️"सिख :- हाथी की इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हमारे मन में एक बार उत्साह - उमंग जाग जाए तो फिर हमें कार्य करने की ऊर्जा स्वतः ही मिलने लगती है और कार्य के प्रति उत्साह का मनुष्य की उम्र से कोई संबंध नहीं रह जाता।


जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखे और निराशा को हावी न होने दे।


कभी - कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है।

 एक बार एक शिकारी जंगल में शिकार करने के लिए गया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जाल में एक बाज पकड़ लिया।


शिकारी जब बाज को लेकर जाने लगा तब रास्ते में बाज ने शिकारी से कहा, “तुम मुझे लेकर क्यों जा रहे हो?”


शिकारी बोला, “ मैं तुम्हे मारकर खाने के लिए ले जा रहा हूँ।”


बाज ने सोचा कि अब तो मेरी मृत्यु निश्चित है। वह कुछ देर यूँही शांत रहा और फिर कुछ सोचकर बोला, “देखो, मुझे जितना जीवन जीना था मैंने जी लिया और अब मेरा मरना निश्चित है, लेकिन मरने से पहले मेरी एक आखिरी इच्छा है।”


“बताओ अपनी इच्छा?”, शिकारी ने उत्सुकता से पूछा।


बाज ने बताना शुरू किया-


मरने से पहले मैं तुम्हें दो सीख देना चाहता हूँ, इसे तुम ध्यान से सुनना और सदा याद रखना।


पहली सीख तो यह कि किसी कि बातों का बिना प्रमाण, बिना सोचे-समझे विश्वास मत करना।


और दूसरी ये कि यदि तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो या तुम्हारे हाथ से कुछ छूट जाए तो उसके लिए कभी दुखी मत होना।


शिकारी ने बाज की बात सुनी और अपने रस्ते आगे बढ़ने लगा।


कुछ समय बाद बाज ने शिकारी से कहा- “ शिकारी, एक बात बताओ…अगर मैं तुम्हे कुछ ऐसा दे दूँ जिससे तुम रातों-रात अमीर बन जाओ तो क्या तुम मुझे आज़ाद कर दोगे?”


शिकारी फ़ौरन रुका और बोला, “ क्या है वो चीज, जल्दी बताओ?”


बाज बोला, “ दरअसल, बहुत पहले मुझे राजमहल के करीब एक हीरा मिला था, जिसे उठा कर मैंने एक गुप्त स्थान पर रख दिया था। अगर आज मैं मर जाऊँगा तो वो हीरा इसे ही बेकार चला जाएगा, इसलिए मैंने सोचा कि अगर तुम उसके बदले मुझे छोड़ दो तो मेरी जान भी बच जायेगी और तुम्हारी गरीबी भी हमेशा के लिए मिट जायेगी।”


यह सुनते ही शिकारी ने बिना कुछ सोचे समझे बाज को आजाद कर दिया और वो हीरा लाने को कहा।


बाज तुरंत उड़ कर पेड़ की एक ऊँची साखा पर जा बैठा और बोला, “ कुछ देर पहले ही मैंने तुम्हे एक सीख दी थी कि किसी के भी बातों का तुरंत विश्वास मत करना लेकिन तुमने उस सीख का पालन नही किया…दरअसल, मेरे पास कोई हीरा नहीं है और अब मैं आज़ाद हूँ।



यह सुनते ही शिकारी मायूस हो पछताने लगा…तभी बाज फिर बोला, तुम मेरी दूसरी सीख भूल गए कि अगर कुछ तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो तो उसके लिए तुम कभी पछतावा मत करना।


 इस कहानी - से हमें ये सीख मिलती है कि हमे किसी अनजान व्यक्ति पर आसानी से विश्वास नहीं करना चाहिए और किसी प्रकार का नुक्सान होने या असफलता मिलने पर दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि उस बात से सीख लेकर भविष्य में सतर्क रहना चाहिए।

 कल्पना शक्ति के प्रयोग ☜


✽ सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें-- आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण-- जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। 


✽ अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा-- कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। 


सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं।


✽ जब रात को तुम सोते हो तो कल्पना करो कि तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो….जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो।तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो….जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो।तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो….जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो, तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो। बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद के आने तक तुम्हें कल्पना करते जाना है ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुलमिल जाएं।


✽ किसी नकारात्मक बात की कल्पना मत करें, क्योंकि जिन व्यक्तियों में निषेधात्मक कल्पना करने की क्षमता होती है, अगर वे ऐसी कल्पना करते हैं तो वह वास्तविकता में बदल जाती है। 


✽ अगर तुम कल्पना करते हो कि तुम बीमार पड़ोगे तो तुम बीमार पड़ जाते हो। अगर तुम सोचते हो कि कोई तुमसे कठोरता से बात करेगा तो वह करेगा ही।


 तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी। तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी। तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी। तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। उसे नकार दें, छोड़ दें उसे,फेंक दें उसे।


✽ एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो - बिना किसी कारण के।एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो - बिना किसी कारण के।एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो - बिना किसी कारण के।

 ⭕️"प्रेरणादायक कहानी- ध्यान से पढ़िए..✍️

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बहुत पहले आप ने एक चिड़िया की कहानी सुनी होगी...


जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फंस गया था...


चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया उस दाने को दे देने के लिए लेकिन पेड़ उस छोटी सी चिड़िया की बात भला कहां सुनने वाला था...


हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गई और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वो उसका दाना नहीं दे रहा...


भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहां काटने वाला था...


फिर चिड़िया राजा के पास गई और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा...


राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डांट कर भगा दिया कि कहां एक दाने के लिए वो उस तक पहुंच गई है। 

चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी...


वो महावत के पास गई कि अगली बार राजा जब हाथी की पीठ पर बैठेगा तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता...

बढ़ई पेड़ नहीं काटता...

पेड़ उसका दाना नहीं देता...

महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया...


चिड़िया फिर हाथी के पास गई और उसने अपने अनुरोध को दुहराया कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना क्योंकि वो राजा को गिराने को तैयार नहीं...


राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं...

बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं...

पेड़ दाना देने को राजी नहीं।

हाथी बिगड़ गया...

उसने कहा, ऐ छोटी चिड़िया..

तू इतनी सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?


चिड़िया आखिर में चींटी के पास गई और वही अनुरोध दोहराकर कहा कि तुम हाथी की सूंढ़ में घुस जाओ...

चींटी ने चिड़िया से कहा, "चल भाग यहां से...बड़ी आई हाथी की सूंढ़ में घुसने को बोलने वाली।


अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया...उसने कहा कि "मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत, और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊं...पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा ही सकती हूँ...


चींटी डर गई...भाग कर वो हाथी के पास गई...हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुंचा...महावत राजा के पास कि हुजूर चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूंगा....राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया...उससे कहा कि पेड़ काट दो नहीं तो सजा दूंगा...बढ़ई पेड़ के पास पहुंचा...बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो.मैं चिड़िया को दाना लौटा दूंगा...


निष्कर्ष-🤭

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आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा...आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी सी चिड़िया की तरह होंगे, लेकिन ताकत की कड़ियां कहीं न कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी...हर शेर को सवा शेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई से घबराएं नहीं...


आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जाएंगे तो वो काम होकर रहेगा... यकीन कीजिए...हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है और अंत में सबसे ताकतवर आप होते हैं...


हिम्मत, लगन और पक्का इरादा ही हमारी ताकत की बुनियाद है..!!       


बड़े सपनो को पाने वाले हर व्यक्ति को सफलता और असफलता के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है


पहले लोग मजाक उड़ाएंगे,फिर लोग साथ छोड़ेंगे, फिर विरोध करेंगे


फिर वही लोग कहेंगे हम तो पहले से ही जानते थे की एक न एक दिन तुम कुछ बड़ा करोगे!


रख हौंसला वो मंज़र भी आयेगा,

प्यासे के पास चलकर समंदर भी आयेगा..! 


थक कर ना बैठ, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर मंजिल भी मिलेगी और जीने का मजा भी आयेगा !!

 "एकाग्रता कैसे बढ़ाए " 


🔰सवाल : नमस्ते दीदी 😊 म कॉम्पीटिशन का एग्जाम दे रही हु लेकिन मै कभी कभी बहुत इस बात को लेकर नर्वस हो जाती हु..की कभी कभी ध्यान भटक जाता हैं : मेरी तैयारी भी अच्छी होते हुए भी.. मै पेपर देते समय कुछ आता हुआ भी गलत कर देती हु कुछ उपाय बताये क्या करना चाहिए..... मै जब से राजयोग मैडिटेशन ग्रुप ज्वाइन किया हैं तब से मेरे मै बहुत कुछ सुधार आया हैं.. और मै अब सकरात्मक रह पाती हु और सोच पाती हु....🙏🙏  💞✍️✍️🌹


 

जवाब : Student को पढ़ाई करने के लिए मंन बुद्धि का उपयोग करना होता है। तो सबसे पहले मन क्या चीज है बुद्धि क्या चीज है और उनका कार्य क्या है शरीर में कौन सी जगह पर रहती है यह जानना बहुत जरूरी।


मन और बुद्धि आत्मा की शक्ति आत्मा दोनों आंखों के बीच  भ्रुकुटी में रहती है। हम कहते हैं कि मेरा मन है,तो में आत्मा मन, बुद्धि  की मालिक हूं। अगर मालिक अपने सीट से कर्मचारी को आर्डर करें कुछ काम दे तो करना पड़ता है।मालिक अपने सीट से कर्मचारी को आर्डर करें कुछ काम दे तो करना पड़ता है।मालिक अपने सीट से कर्मचारी को आर्डर करें कुछ काम दे तो करना पड़ता है। तो इसी प्रकार से यह मन बुद्धि आत्मा के कहने पर आर्डर पर कार्य करती रहती है। लेकिन हम यह भूल जाने के कारण हमें पता नहीं था कि हम आत्मा मन के  मालिक होते हुए भी मन के गुलाम हो गए है।



मन भटकता है मन लगता नहीं मन मानता नहीं क्योंकि हम मालिक पन को भूल गए। तो मैं आत्मा मालिक हूं इस स्मृति की सीट पर सेट होना है 



भ्रुकुटी आसन पर आत्मा इस देह की मालिक है कर्मेंद्रियों की मालिक है ,और मन बुद्धि की मालिक है। और 


मैं आत्मा महान आत्मा हू सर्वश्रेष्ठ आत्मा हूं सर्वशक्तिमान  पिता की संतान मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा इस ग्रुप भ्रुकुटी  के मध्य में सीट के आसन पर बैठ कर के मन बुद्धि को हम जब आर्डर करते हैं कि हे मन अब तुम्हारा भटकना बंद करो और मन को उस परमात्मा  पिता ज्योति बिंदु को याद करो । 



क्योंकि उनके साथ हमारा सर्व संबंधों का नाता है मात-पिता, टीचर, साथी और साजन का संबंध है। और संबंध  के आधार पर हमें प्राप्ति भी बहुत होती है। सुख शांति प्रेम आनंद, और ज्ञान की प्राप्ति होती है। मन का यह स्वभाव है कि जहां संबंध है और जहां पर प्राप्ति है वहीं पर जाता है।मन की कंट्रोलर बुद्धि है बुद्धि को परमात्मा की याद में एकाग्र करने से मन का भटकना शांत हो जाता है।


पढ़ाई पढ़ने के लिए मन बुद्धि की एकाग्रता बहुत जरूरी है एकाग्रता आने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ विधि है। मेडिटेशन जब  भी आप पढ़ाई पढ़ने बैठेंगे तो पहले 2 मिनट मन बुद्धि को उस परमात्मा पिता की याद में एकाग्र करना  है  एकाग्र होने के बाद आप जितना समय चाहे  उतना समय पढ़ाई पढ़ सकते हैं। और पढ़ा हुआ एकाग्र बुद्धि में बैठ जाता है।


✅एग्जाम देते समय शुरुआत में और बीच-बीच में 1 मिनट का अभ्यास करते रहे तो मन बुद्धि की एकाग्रता रहेगी किसी भी बात का टेंशन भय से मुक्त रहेंगे।


 मन की अवस्था एक रस अचल अडोल रहेगी। मन में हलचल होने से भयभीत होकर जो आता है वह भी भूल जाते हैं। इसीलिए यह अभ्यास आपको बहुत मदद करेगा इसको हम मेडिटेशन करते हैं।


🔰अभ्यास इस तरह से करें👇


मैं आत्मा ज्योति 🌟 सवरूप बिंदु 💫रप लाइट भृकुटी के बीच में विराजमान है मैं इस देह की मालिक हूं सभी कर्मेंद्रियों की मालिक और मन बुद्धि की मालिक हूं मैं  मास्टर सर्वशक्तिमान हूं। ऊपर से महाज्योति सर्वशक्तिमान की किरने मुझ आत्मा पर आ रही है, मन शांत और बुद्धि एकाग्र हो रही है। अनुभव करें बुद्धि के नेत्र से देखे।


नोट: जिन भाई बहनों ने राजयोग मेडिटेशन कोर्स नहीं किया है उन्हे नए ग्रुप का लिंक जल्द शेयर किया जाएगा यही पर , तब आप जुड़ सकते है।

 प्रेरणादायक कहानी...👌

पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.


                       ✍️✍️


एक समय की बात है...एक सन्त प्रात: काल भ्रमण हेतु समुद्र के तट पर पहुँचे...


समुद्र के तट पर उन्होने एक पुरुष को देखा जो एक स्त्री की गोद में सर रख कर सोया हुआ था.


पास में शराब की खाली बोतल पड़ी हुई थी. सन्त बहुत दु:खी हुए.


उन्होने विचार किया कि ये मनुष्य कितना तामसिक और विलासी है, जो प्रात:काल शराब सेवन करके स्त्री की गोद में सर रख कर प्रेमालाप कर रहा है.


थोड़ी देर बाद समुद्र से बचाओ, बचाओ की आवाज आई,


सन्त ने देखा एक मनुष्य समुद्र में डूब रहा है,मगर स्वयं तैरना नहीं आने के कारण सन्त देखते रहने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.


स्त्री की गोद में सिर रख कर सोया हुआ व्यक्ति उठा और डूबने वाले को बचाने हेतु पानी में कूद गया.


थोड़ी देर में उसने डूबने वाले को बचा लिया और किनारे ले आया.


सन्त विचार में पड़ गए की इस व्यक्ति को बुरा कहें या भला.


वो उसके पास गए और बोले भाई तुम कौन हो, और यहाँ क्या कर रहे हो...?


उस व्यक्ति ने उत्तर दिया : —


मैं एक मछुआरा हूँ मछली मारने का काम करता हूँ.आज कई दिनों बाद समुद्र से मछली पकड़ कर प्रात: जल्दी यहाँ लौटा हूँ.


मेरी माँ मुझे लेने के लिए आई थी और साथ में(घर में कोई दूसरा बर्तन नहीं होने पर) इस मदिरा की बोतल में पानी ले आई.


कई दिनों की यात्रा से मैं थका हुआ था और भोर के सुहावने वातावरण में ये पानी पी कर थकान कम करने माँ की गोद में सिर रख कर ऐसे ही सो गया.


सन्त की आँखों में आँसू आ गए कि मैं कैसा पातक मनुष्य हूँ,जो देखा उसके बारे में मैंने गलत विचार किया जबकि वास्तविकता अलग थी.


कोई भी बात जो हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है वैसी नहीं होती है उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है.


⭕️'शिक्षा.....✍️


किसी के प्रति कोई निर्णय लेने से पहले सौ बार सोचें और तब फैसला करें.

 'जल्दीबाजी में निर्णय लेने से बचें.

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एक बार की बात है एक राजा था। उसका एक बड़ा-सा राज्य था। एक दिन उसे देश घूमने का विचार आया और उसने देश भ्रमण की योजना बनाई और घूमने निकल पड़ा। जब वह यात्रा से लौट कर अपने महल आया। उसने अपने मंत्रियों से पैरों में दर्द होने की शिकायत की। राजा का कहना था कि मार्ग में जो कंकड़ पत्थर थे वे मेरे पैरों में चुभ गए और इसके लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए।


कुछ देर विचार करने के बाद उसने अपने सैनिकों व मंत्रियों को आदेश दिया कि देश की संपूर्ण सड़कें चमड़े से ढंक दी जाएं। राजा का ऐसा आदेश सुनकर सब सकते में आ गए। लेकिन किसी ने भी मना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह तो निश्चित ही था कि इस काम के लिए बहुत सारे रुपए की जरूरत थी। लेकिन फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर बाद राजा के एक बुद्घिमान मंत्री ने एक युक्ति निकाली। उसने राजा के पास जाकर डरते हुए कहा कि मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूँ।


अगर आप इतने रुपयों को अनावश्यक रूप से बर्बाद न करना चाहें तो एक अच्छी तरकीब मेरे पास है। जिससे आपका काम भी हो जाएगा और अनावश्यक रुपयों की बर्बादी भी बच जाएगी।


राजा आश्चर्यचकित था क्योंकि पहली बार किसी ने उसकी आज्ञा न मानने की बात कही थी। उसने कहा बताओ क्या सुझाव है। मंत्री ने कहा कि पूरे देश की सड़कों को चमड़े से ढंकने के बजाय आप चमड़े के एक टुकड़े का उपयोग कर अपने पैरों को ही क्यों नहीं ढंक लेते। राजा ने अचरज की दृष्टि से मंत्री को देखा और उसके सुझाव को मानते हुए अपने लिए जूता बनवाने का आदेश दे दिया।


यह कहानी..हमें एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है कि हमेशा ऐसे हल के बारे में सोचना चाहिए जो ज्यादा उपयोगी हो। जल्दबाजी में अप्रायोगिक हल सोचना बुद्धिमानी नहीं है। दूसरों से राय मशवरा करके भी समस्याओं का हल खोजने में मदद मिलती है ।

 खाली हाँथ है जाना👈🏿👐


▪️कछ समय पहले की बात है । एक बहुत धनी आदमी था । एक बार उसके मन में भी किसी संत से ज्ञान लेने की इच्छा हुई । लेकिन उसके मन में धन का बहुत अहंकार था । वो संत के पास गया । तो वे सच्चे संत तुरन्त समझ गये कि - इसके मन में धन का बेहद अहंकार है ।


▪️लकिन ये बात उन्होंने अपने मन में ही रहने दी । सेठ ने उन सन्त से ज्ञान मंत्र लिया ।


▪️और बोला - महाराज जी ! मेरे पास बहुत धन है । किसी चीज की कमी हो । तो बोलना । मेरे योग्य कोई सेवा हो । तो बताना ।


▪️सत उसकी इस बात के पीछे छिपे अहंकार को समझ गये । और उन्होंने उसी पल उसका अहंकार दूर करने की सोची । वे कुछ देर सोचते रहे ।


▪️फिर उन्होंने कहा - और तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं । पर मेरे कपड़ों को सीने के लिए सुई की अक्सर जरूरत पड़ जाती है । अतः यदि तुम मेरा काम करना ही चाहते हो । तो मेरे शरीर त्यागने के बाद । जब कभी तुम ऊपर ( मृत्यु के बाद ) आओ । तो मेरे लिये अपने साथ एक सुई लेते आना ।


▪️सठ को एक सुई का इंतजाम करना बेहद मामूली बात ही लगी। इसलिये वह झोंक में एकदम बोला - ठीक है महाराज !


▪️लकिन वो जल्दी में ये बात बोल तो गया । परन्तु फिर उसको ध्यान आया कि - ये कैसे हो सकता है ? मरने के बाद मैं भला सुई कैसे ले जा सकता हूँ । और अगर सुई लेकर भी जाता हूँ तो उसे कैसे पता चलेगा कि मैं आपके लिए सुई लेकर आ गया हूँ और सबसे बड़ी बात मरने के बाद वो सुई तो वहीँ की वही रह जायेगी ।


  इस बात के ध्यान में आते ही संत की बात का सही मतलब सेठ की समझ में भली भांति आ गया कि - किसी के मरने के बाद ना तो हम किसी को कुछ दे सकते हैं और ना ही वो कुछ ले जा सकता है । जिस धन पर मैं अभी गर्व कर रहा हूँ । वो सब यहीं का यहीं ही पड़ा रह जायेगा । और मैं एक सुई जैसी मामूली चीज भी अपने साथ नहीं ले जा सकता । तब उसका सारा अभिमान चूर चूर हो गया । और वो क्षमा माँगता हुआ संत के चरणों में गिर पड़ा  ।


       💠💠🔅शभ रात्रि 🔅💠💠

 🙏जीवन बदलने वाली  कहानी🙏🌹



पिता और पुत्र साथ-साथ टहलने निकले,वे दूर खेतों 🌾🌿की तरफ निकल आये, तभी पुत्र 👱 न देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते 👞👟🥾उतरे पड़े हैं, जो ...संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर 👳‍♀ क थे.


पुत्र को मजाक 🧐सझा. उसने पिता से कहा  क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार 😃 बनायें,आखिर ... मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है. पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा.🤨


पुत्र बोला ~ हम ये जूते👞👟🥾 कहीं छुपा कर झाड़ियों🌲 क पीछे छुप जाएं.जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा😂 आएगा.उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द  ☺️म जीवन भर याद रखूंगा.



पिता, पुत्र की बात को सुन  गम्भीर 🤫हये और बोले " बेटा ! किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना ❌. जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं,वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं. तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है,✅



 तो आओ .. आज हम इन जूतों👞👟🥾 म कुछ सिक्के  💰💷डाल दें और छुप कर 👀 दखें कि ... इसका मजदूर👳‍♀ पर क्या प्रभाव पड़ता है.पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों  🌲🌿म छुप गए.


मजदूर 👳‍♀ जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों 👞👟🥾की जगह पर आ गया. उसने जैसे ही एक पैर 👢 जते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ 😲, उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा कि ...अन्दर कुछ सिक्के 💰💷 पड़े थे.


उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से  🧐उन्हें देखने लगा.फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार 🤝शख्स कौन है ?


दूर-दूर तक कोई नज़र👀 नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए. अब उसने दूसरा जूता उठाया,  उसमें भी सिक्के पड़े थे.


मजदूर भाव विभोर  ☺️हो गया.

वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ ...आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा 😭. वह हाथ जोड़ 🙏 बोला 


हे भगवान् 🙏 ! आज आप ही ☝️ किसी रूप में यहाँ आये थे, समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके  माध्यम से जिसने भी ये मदद दी,उसका लाख-लाख धन्यवाद 🙌🙏.आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी 🤒🤧🤕को दवा और भूखे बच्चों 👦को रोटी🍜🥪 मिल सकेगी.तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद.🙏☺️


मजदूर की बातें सुन ... बेटे की आँखें 👁भर आयीं.😥😩


पिता 👨‍🦳न पुत्र👱 को सीने से लगाते हुयेे कहा क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू😢 और  दिए हुये आशीर्वाद🤚 तम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ❓


    बेटे ने कहा पिताजी .. आज आपसे मुझे जो सीखने ✍️🙇 को मिला है, उसके आनंद ☺️ को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ. अंदर में एक अजीब सा सुकून☺️ ह.


आज के प्राप्त सुख 🤗और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा. आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था.आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि 

 

लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है। 

 क्रोध की चिंगारी?

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जानिए आज विशेष 📋📈

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✔️ एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। वे चलते चलते एक गांव के पास स्थित एक बगीचे में पहुंचे। बुद्ध के आने की खबर आसपास के गांवों में पहुंच गई और देखते ही देखते उनके दर्शन को हजारों लोग एकत्रित हो गए। 


✔️ व सभी बुद्ध का दर्शन पाकर बेहद प्रसन्न हुए और वे सभी बुद्ध की अमृतवाणी सुनने की आस में वहीं उनके निकट बैठ गए। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मौन बैठे थे। शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोग बुद्ध से कुछ सुनने की आस लगाए बैठे थे, परंतु बुद्ध तो अपने आप में ही खोए अभी भी मौन बैठे थे। शिष्यों को लगा कि तथागत कहीं अस्वस्थ तो नहीं है? 


✔️ आखिर एक शिष्य ने उनसे पूछ ही लिया- तथागत, आज आप शांत क्यों बैठे हैं? आपको सुनने की प्रतीक्षा में यहां दूर-दूर से आए हजारों लोग बैठे हैं। फिर आप मौन क्यों हैं ? क्या हममें से किसी शिष्य से ऐसी गलती हो गई है, जिससे कि आप नाराज हैं ? तभी किसी अन्य शिष्य ने पूछा- भगवन, कहीं आप अस्वस्थ तो नहीं हैं ? परंतु बुद्ध अभी भी मौन थे। सच तो यह था कि हर पल आनंद में स्थित रहने वाले बुद्ध न तो नाराज थे और न ही अस्वस्थ। 


✔️ व तो सभा में बैठे हुए हजारों लोगों के चित्त के चित्र को अपने ध्यानस्थ नेत्रों से पलभर में ही देख रहे थे कि सभा में बैठे प्रत्येक व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है ? उसके चित्त की दशा क्या है ? इसलिए वे अपने तरीके से ही लोगों के चित्त की शल्यक्रिया किया करते थे। वे अपने तरीके से लोगों की मानसिक उलझनों को दूर करने का प्रयास करते थे।


✔️ उस समय वेमौन में ही सभा में बैठे किसी व्यक्ति के मन से उठ रही क्रोध की अदृश्य चिंगारी को देख रहे थे। वे अभी भी शांत ही बैठे थे कि तभी सभा से कुछ दूरी पर खड़ा एक व्यक्ति जोर चिल्लाया-'आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई है? मुझे प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं मिली?' इसी बीच एक शिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए कहा कि उस व्यक्ति को सभा में आने की अनुमति प्रदान की जाए।'


✔️ बद्ध मौन से बाहर आए और बोले- 'नहीं, उसे सभा में आने की आज्ञा नहीं दी जा सकती है।' यह सुन शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति महात्मा बुद्ध द्वारा किसी को अनुमति न दिया जाना वास्तव में सबके लिए आश्चर्यजनक था। 


✔️ बद्ध की दृष्टि में तो मानव-मानव में कोई भेद नहीं था। बुद्ध की यह प्रतिक्रिया निश्चित ही सबको विस्मय और आश्चर्य में डालने वाली थी। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ वहां बैठे सभी लोगों के मनोभावों को बखूबी समझ रहे थे। इसलिए बुद्ध ने कहा- 'इस व्यक्ति के अंदर अदृश्य रूप में क्रोध की ज्वाला तो पहले से ही धधक रही थी, जो अब बाहर प्रकट हो रही है। जैसे- अग्नि अपने संपर्क में आनेवाली हर चीज को भस्मीभूत कर देती है, वैसे ही क्रोधी व्यक्ति के भीतर से निकलकर आसपास के लोगों में भी क्रोध की चिंगारी सुलगा देती है । इसलिए क्रोधी व्यक्ति को छूने से कोई भई जल सकता है और अपनी हानि कर सकता है।'


✔️ बद्ध आगे बोले- 'क्रोध पलभर में ही व्यक्ति की सारी अच्छाई को नष्ट कर सकता है और उससे कुछ भी अनिष्ट करवा सकता है । क्रोध की अग्नि पल भर में ही व्यक्ति के भीतर की करुणा और प्रेम जैसी उच्चतर भावनाओं को सोख लेती है। 


✔️ करोध, हिंसा का ही प्रकट रूप है। जिस व्यक्ति में क्रोध की अग्नि जल रही है, वह व्यक्ति अहिंसक हो ही नहीं सकता। भला जो स्वयं को अपने क्रोध की चिंगारी से पल-पल जला रहा हो, वह दूसरों के साथ अहिंसक कैसे हो सकता है।

 

✔️ इसलिए ऐसे व्यक्ति को सभा से, समूह से समाज के दूर ही रहना चाहिए।' सभा में बैठे क्रोधी व्यक्ति को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था । वह दौड़ता हुआ आया व बुद्ध के चरणों में माथा टेककर बिलखने लगा । 


✔️ परेम और करुणा की प्रतिमूर्ति बुद्ध ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा और बोले-वत्स, क्रोध दहकते हुए उस कोयले के समान है, जिसे व्यक्ति दूसरों को जलाने के लिए अपने पास,अपने अंदर रखे रहता है और उससे हर पल वह स्वयं ही जलता रहता है, इसलिए क्रोध से बाहर निकलो। अपने अंदर प्रेम करुणा और सहिष्णुता के जल को भरकर अपने भीतर जल रही क्रोध को अग्नि को, चिंगारी को सदा-सदा के लिए बुझा सकते हों। क्रोध के शांत होते ही, समाप्त होते ही तुम शांति को प्राप्त होगे और तुम्हें तुम्हारे अंदर से ही सुख की प्राप्ति होने लगेगी।

 आज का प्रेरक प्रसङ्ग


   !! भगवान सबको देखता हैं !!

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एक बार एक गाँव में एक भला आदमी बिक्री से दुखी था| यह देख एक चोर को उस पर दया आ गई| वह उस बेरोजगार आदमी के पास गया और बोला, “मेरे साथ चलो, चोरी में बहुत सारा धन मिलेगा” आदमी बैकर बैठे-बैठे परेशान हो गया था| इसलिए वह उस चोर के साथ चोरी करने को तैयार हो गया| लेकिन अब समस्या यह थी की उसे चोरी करना आती नहीं थी| उसने साथी से कहा, “मुझे चोरी करना आती तो नहीं है, फिर कैसे करूँगा|” चोर ने कहा” तुम उसकी चिंता मत करो, मैं तुम्हें सब सिखा दूंगा”


अगले दिन दोनों रात के अँधेरे में गाँव से दूर एक किसान का पका हुआ खेत काटने पहुँच गए| वह खेत गाँव से दूर जंगल में था, इसीलिए वहां रात में कोई रखवाली के लिए आता जाता न था| लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिहाज़ से उसने अपने नए साथी को खेत की मुंडेर पर रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और किसी के आने पर आवाज लगाने को कहकर खुद खेत में फसल चोरी करने पहुँच गया| नए साथी ने थोड़ी ही देर में अपने साथी को आवाज लगे, “भर जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो…खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है” चोर ने जैसे ही अपने साथी की बात सुनी वह फसल काटना छोड़ उठकर भागने लगा|


कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पुछा, “मालिक कहाँ खड़ा था? कैसे देख रहा था? नए चोर ने सहजता पूर्वः जवाब दिया, “मित्र! इश्वर हर जगह मौजूद है| इस संसार में जो कुछ भी है उसी का है और वह सब कुछ देख रहा है| मेरी आत्मा ने कहा, इश्वर यह भी मौजूद है और हमें चोरी करते हुए देख रहा है…इस स्थती में हमारा भागना ही उचित था| पहले चोर पर बेरोजगार आदमी की बातों का इतना प्रभाव पड़ा की उसने चोरी करना ही छोड़ दिया|

  रात्रि कहानी 💞💞💞

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एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है, अच्छी आत्माएं इतने शानदार महल में रहती हैं और हम सब खंडहरों में, आखिर ये भेदभाव क्यों है, जबकि हम सब आप ही की संतान हैं।


भगवान ने उन्हें समझाया, ” मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया पर तुम ही अपने कर्मो से बुरी आत्माएं बन गयीं।


पर भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएं भेदभाव किये जाने की शिकायत करतीं रहीं।


इसपर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले, “ बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है, आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खँडहर दिए थे वो सब नष्ट हो जायेंगे, और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने अपने लिए दो अलग-अलग शहरों का निर्माण करेंगी। ”


तभी एक आत्मा बोली, “ लेकिन इस निर्माण के लिए हमें ईंटें कहाँ से मिलेंगी ?”


“जब पृथ्वी पर कोई इंसान सच या झूठ बोलेगा तो यहाँ पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी।  सभी ईंटें मजबूती में एक सामान होंगी, अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम सच बोलने पर बनने वाली ईंटें लोगे या झूठ बोलने पर!”, भगवान ने उत्तर दिया ।


बुरी आत्माओं ने सोचा, पृथ्वी पर झूठ बोलने वाले अधिक लोग हैं इसलिए अगर उन्होंने झूठ बोलने पर बनने वाली ईंटें ले लीं तो एक विशाल शहर का निर्माण हो सकता है, और उन्होंने भगवान से झूठ बोलने पर बनने वाली ईंटें मांग ली।


दोनों शहरों का निर्माण एक साथ शुरू हुआ, पर कुछ ही दिनों में बुरी आत्माओं का शहर विशाल रूप लेने लगा, उन्हें लगातार ईंटों के ढेर मिलते जा रहे थे और उससे उन्होंने एक शानदार महल बना लिया।  वहीँ अच्छी आत्माओं का निर्माण धीरे -धीरे चल रहा था, काफी दिन बीत जाने पर भी उनके शहर का एक ही हिस्सा बन पाया था।


कुछ दिन और ऐसे ही बीते, फिर एक दिन अचानक एक अजीब सी घटना घटी।  बुरी आत्माओं के शहर से ईंटें गायब होने लगीं … दीवारों से, छतों से, इमारतों की नीवों से,… हर जगह से ईंटें गायब होने लगीं और देखते -देखते उनका शहर खंडहर का रूप लेने लगा। परेशान आत्माएं तुरंत भगवान के पास भागीं और पुछा, “ हे प्रभु, हमारे महल से अचानक ये ईंटें गायब क्यों होने लगीं …हमारा महल शहर तो फिर से खंडहर बन गया ?”


भगवान मुस्कुराये और बोले, “ ईंटें गायब होने लगीं!! अच्छा -अच्छा, लगता है जिन लोगों ने झूठ बोला था उनका झूठ पकड़ा गया, और इसीलिए उनके झूठ बोलने से बनी ईंटें भी गायब हो गयीं।


मित्रों,इस कहानी से हमें कई ज़रूरी बातें सीखने को मिलती है, जो हम बचपन से सुनते भी आ रहे हैं पर शायद उसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते :


झूठ की उम्र छोटी होती है, आज नहीं तो कल झूठ पकड़ा ही जाता है।


झूठ और बेईमानी के रास्ते पर चल कर सफलता पाना आसान लगता है पर अंत में वो हमें असफल ही बनाता है।


वहीँ सच्चाई से चलने वाले धीरे -धीरे आगे बढ़ते हैं पर उनकी सफलता स्थायी होती है. अतः हमें हमेशा सच्चाई की बुनियाद पर अपने सफलता की इमारत खड़ी करनी चाहिए, झूठ और बेईमानी की बुनियाद पर तो बस खंडहर ही बनाये जा सकते है ।

 एक् शिक्षाप्रद कहानी 


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एक गांव में एक किसान रहता था। वह रोज सुबह झरनों से साफ पानी लाने के लिए दो बड़े घड़े ले जाता था, जिन्हें वह डंडे में बांधकर अपने कंधे पर दोनों ओर लटका लेता था। उनमें से एक घड़ा कहीं से फूटा हुआ था, और दूसरा एकदम सही था ✅। इस तरह रोज घर पहुंचते-पहुंचते किसान के पास डेढ़ घड़ा पानी ही बच पाता था।


सही घड़े को इस बात का घमंड 😎 था कि वो पूरा का पूरा पानी घर पहुंचाता है और उसके अन्दर कोई कमी नहीं है। दूसरी तरफ फूटा घड़ा इस बात से शर्मिंदा 😩 रहता था कि वो आधा पानी ही घर तक पहुंचा पाता है और किसान की मेहनत बेकार जाती है।😢


 फूटा घड़ा ये सब सोचकर बहुत परेशान रहने लगा और एक दिन उससे रहा नहीं गया। उसने किसान से कहा,  'मैं खुद पर शर्मिंदा हूं और आपसे माफी मांगना चाहता हूं।'


किसान ने पूछा, 'क्यों ❓ तम किस बात से शर्मिंदा हो❓' 


फूटा घड़ा बोला, 'शायद आप नहीं जानते पर मैं एक जगह से फूटा हुआ हूं, और पिछले दो सालों से मुझे जितना पानी घर पहुंचाना चाहिए था, बस उसका आधा ही पहुंचा पाया हूं। मेरे अंदर ये बहुत बड़ी कमी है और इस वजह से आपकी मेहनत बर्बाद होती रही है।' 😔


किसान को घड़े की बात सुनकर थोडा दुख हुआ और वह बोला, 'कोई बात नहीं, मैं चाहता हूं कि आज लौटते वक्त तुम रास्ते में पड़ने वाले सुन्दर फूलों 🌸🌺🌷🌼🌻💐 को देखो। घड़े ने वैसा ही किया। वह रास्ते भर सुन्दर फूलों को देखता आया। ☺️


ऐसा करने से उसकी उदासी कुछ दूर हुई पर घर पहुंचते-पहुंचते फिर उसके अन्दर से आधा पानी गिर चुका था।' वह मायूस 😢 होकर किसान से माफी मांगने लगा।


किसान बोला, 'शायद तुमने ध्यान नहीं दिया। पूरे रास्ते में जितने भी फूल थे।' वो बस तुम्हारी तरफ ही थे। सही घड़े की तरफ एक भी फूल नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि मैं हमेशा से तुम्हारे अंदर की कमी को जानता था, और मैंने उसका फायदा उठाया। मैंने तुम्हारी तरफ वाले रास्ते पर रंग-बिरंगे फूलों के बीज बो दिए थे।


तुम रोज थोड़ा-थोड़ा कर उन्हें सींचते रहे और पूरे रास्ते को इतना खूबसूरत 😊 बना दिया। आज तुम्हारी वजह से ही मैं इन फूलों को भगवान ☝️ को अर्पित कर पाता हूं और अपने घर  🏡को सुन्दर बना पाता हूं। तुम्हीं सोचो, 'यदि तुम जैसे हो, वैसे नहीं होते तो भला क्या मैं ये सब कुछ कर पाता ❓


हम सभी के अन्दर कोई ना कोई कमी है, पर यही कमियां हमें अनोखा बनाती हैं। यानी आप जैसे हैं वैसे ही रहिए। उस किसान की तरह हमें भी हर किसी को वैसा ही स्वीकारना चाहिए जैसा वह है। उसकी अच्छाई पर ध्यान देना चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे तब फूटा घड़ा भी अच्छे घड़े से कीमती हो जाएगा ll

 Best Motivational Line 💐❣️


Ⓜ️अपनी ज़िंदगी की सारी हदें आपने खुदनाई हैं। इन हदो को तोड़ने के बाद आप कामयाब हो जाओगे।


Ⓜ️एक दिन आपका सारा जीवन आपकी आंखों के सामने से होकर गुजरेगा। सुनिश्चित करें कि यह देखने लायक हो।


Ⓜ️यह आपकी सोच ही है जो आपको राजा भी बना सकती हैं और रंक भी बना सकती हैं। इसलिए अपनी सोच बदलो जिंदगी बदलो।


Ⓜ️गलती होने के डर से कुछ भी ना करना सबसे बड़ी गलती हैं।


Ⓜ️लगातार प्रैक्टिस, आपको उस काम मे महान बना देगी।


Ⓜ️खद को इतना काबिल बना दो कि कामयाबी आपके पास आने के लिये मजबूर हो जाये।


Ⓜ️जयादा सोचने से बचो क्योकि ये आपको अंदर ही अंदर खोखला कर देगा।


Ⓜ️अपने शरीर को स्वस्थ और मजबूत बनाओ, क्योकि पुरी जिंदगी आपको इसी के साथ रहना हैं।


Ⓜ️खद को शांत कर लो, आपमे गजब की शक्ति आ जायेगी।


Ⓜ️आप जो कुछ भी बनना चाहते हो, वो बनने के लिए कभी भी देर नही होती हैं।


Ⓜ️आपमे अपनी खुद की दुनिया बनाने का सामर्थ्य हैं। आप असंभव को भी सम्भव बना सकते हो।


Ⓜ️जब भी रास्ते में मुसीबतें आए तो घबराना मत। नदी की तरह अपने रास्ते से सब कुछ हटाते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाना।


Ⓜ️अभी तक मिली असफलताओं से निराश ना हो, दुगुने उत्साह से लगे रहो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।


Ⓜ️ तम अभी तक अपनी असली औकात नही जानते, वरना ऐसे न बैठे रहते।


Ⓜ️ अभी आप पर दुनिया वाले हंसते हैं, तो चिंता मत कीजिये। जिस दिन आप सफल हो गए, या तो वे आपके आगे पीछे घूमेंगे या फिर कभी शक्ल नही दिखाएंगे।


Ⓜ️आप खुद में दृढ़ विश्वास करे, अच्छा महसूस करे और कड़ी मेहनत करते रहे, यही रहस्य है किस्मत के दरवाजे को खोलने का।

 'दिल छू लेने वाली कहानी...👌

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एक बूढ़ा व्यक्ति था जिसकी पत्नि का कुछ समय पहले ही निधन हो गया था। अब परिवार में केवल बेटा, बहु और एक छोटा सा पोता था, जिनके साथ वह बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वैसे तो परिवार सुख समृद्धि से परिपूर्ण था। किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन वह बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा-खासा नौजवान था, आज बुढ़ापे से हार गया था। अब उसके हाथ-पैर भी कांपने लगे थे और कोई भी काम ठीक ढ़ंग से नहीं कर पाते थे। आज उसे चलने के लिए लाठी की जरुरत पड़ने लगी थी और चेहरा झुर्रियों से भर चुका था। पत्नि की मृत्यु के बाद वे टूट से गए थे और बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहे थे। उनके घर की एक परम्परा बहुत पीढीयों से चली आ रही थी कि घर में शाम का खाना सभी साथ करते थे।


बेटा शाम को ऑफिस से घर आया तो उसे भूख बहुत तेज लगी थी सो जल्दी से भोजन करने के लिए बैठ गया, साथ में पिताजी भी बैठ गए। उसके पिताजी ने जैसे ही थाली उठाने की कोशिश की, तो थाली हाथ से छिटक गई और थोड़ी सब्जी टेबल पर गिर गई तो बहु-बेटे ने घृणा दृष्टि से पिता की ओर देखा और फिर से अपना खाना खाने लगे। बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथो से भोजन करना शुरू किया तो कभी खाना कपड़ों पर गिर जाता, कभी टेबल पर, तो कभी जमीन पर। बहु ने चिढ़ते हुए कहा, “हे राम, पिताजी तो कितनी गन्दी तरह से खाना खाते हैं, इन्हे देख कर घृणा आती है। मन करता है इनकी थाली किसी अलग कोने में लगा दिया करू। बेटे ने भी ऐसे सिर हिलाया जैसे पत्नी की बात से सहमत हो।


उसका पोता यह सब मासूमियत से देख रहा था। अगले दिन पिताजी की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गई। अपनी भोजन की थाली एक कोने में लगी देखकर पिता जी को बहुत दु:ख हुआ लेकिन वे कर भी क्या सकते थे। सो वे बैठकर अपना भोजन करने लगे। भोजन करते-करते उन्हे वह समय याद आ रहा था जब वे अपने इसी बेटे को गोद में बिठाकर बड़े ही प्यार से भाेजन कराया करते थे और वह भी अपना खाना मेरे कपड़ो पर गिराया करता था , लेकिन मैंने कभी भी उसे खाना खिलाना बन्द नहीं किया। मुझे कभी घृणा नहीं आई। बूढ़े पिता यही सोचते हुए रोज की तरह कांपते हाथों से खाना खाने लगे। खाना कभी इधर गिरता, तो कभी उधर गिर जाता। वे ठीक तरह से खाना भी नहीं खा पा रहे थे। उनका पोता, लगातार अपना खाना छोड़कर अपने दादाजी की तरफ देखे जा रहा था तो उसकी माँ ने पूछा, “क्या हुआ बेटे, तुम दादाजी की तरफ क्या देख रहे हो? तुम अपना खाना क्यों नहीं खा रहे?“


बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला, “माँ, मैं देख रहा हूँ कि अपने बूढ़े माँ-बाप के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जब मैं बड़ा होऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जायेंगे, तब मैं भी आप लोगो को इसी तरह कौने में भोजन दिया करूँगा।“बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही दोनों काँप उठे जैसे उन्हे किसी ने खींच के चांटा मार दिया हो। बच्चे की बात उनके मन में बैठ गई थी क्योंकि बच्चे ने मासूमियत के साथ एक बहुत बड़ी सीख दे दी थी।


ऐसा कहते हैं कि बच्चे और बूढ़े एक समान होते हैं लेकिन दोनों के व्यवहार में बहुत फर्क हो जाता है। बच्चे जब छोटे होते हैं और स्वयं अपने हाथ से खा-पी नहीं सकते, तब बड़े उनकी मदद करते हैं, लेकिन जब उम्र बढ़ जाने पर भोजन करते समय बड़ों के हाथ कांपते हैं, तब उन्हीं बच्चों द्वारा उन्हें ताने मारे जाते हैं। बच्चे जब छोटे होते हैं और स्वयं चल-फिर नहीं पाते, तब बड़े उन्हें चलना-फिरना सिखाते हैं, लेकिन जब उम्र बढ़ जाने पर बड़ों के पैर कांपते हैं, तब उन्हीं बच्चों द्वारा उन्हें चलने में मदद करने में, सहारा देने में शर्म महसूस होती है।


इस छोटी सी कहानी का केवल इतना ही उद्देश्य है कि जब बड़ों के हाथ-पैर कांपने लगें, तो उन्हें आपके प्रेम, आपके स्नेह की ज्यादा जरूरत होती है क्योंकि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है। उन्होंने आपको सालों सम्भाला है, उन्हें भी कुछ साल सम्भाल लीजिए, ताकि जब आप बूढ़े होकर फिर से बच्चा बनें, तो आपको भी कोई उतने ही प्रेम और स्नेह से सम्भालने में खुशी अनुभव कर सके।