Saturday, April 18, 2015

 कभी निकाल बाहर करुँगी मैं
वक़्त को
जो हमारे दरमियाँ एक दीवार सा है
कुछ पल ही सही
जी तो लेंगे हम




 वो दिन जब कोई वजहे- इंतज़ार न थी
हम उनमें भी तेरा इंतज़ार करते रहे

रंग बदले किसी सूरत इस तन्हाई का
हम खिज़ा में भी तलाश बहार करते रहे

सुन तो ले, देख तो ले, मान भी ले
हम बेखुदी में तुझ ही से प्यार करते रहे....




 जिन्दगी जख्मो से भरी है,
वक्त को मरहम बनाना सीख लो,
हारना तो है एक दिन मौत से,
फिलहाल दोस्तों के साथ जिन्दगी जीना सीख
लो..!!




 इस दुनीया मैं मुजसे जलने वाले बहोत हैं...
 मगर उससे मुजे कोइ फरक
नहीं पड़ता...
 क्योंकी मुज पे मरने वाले भी
 बहोत हैं.




 किसी शायर ने क्या खूब कहा है-
'रिमझिम तो है
मगर सावन गायब है
बच्चे तो हैं
मगर बचपन गायब है
क्या हो गयी है
तासीर ज़माने की
अपने तो हैं
मगर अपनापन गायब है!


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