Saturday, May 23, 2015

प्यार तो किया मैंने बहुत,
मगर इज़हार न करना आया,
उसने पूछा तो मुझसे बहुत,
मगर इकरार न करना आया.
उल्फत में अक्सर ऐसा होता है,
आँखे हंसती हैं और दिल रोता है,
मानते हो तुम जिसे मंजिल अपनी,
हमसफर उनका कोई और होता है.
ना आना लेकर उसे मेरे जनाजे में,
मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी,
मैं चार लोगो के कंधे पर हूंगा,
और मेरी जान पैदल होगी.
मत पूछ मेरे सब्र की इन्तेहा कहाँ तक है,
तु सितम कर ले, तेरी ताक़त जहाँ तक है,
व़फा की उम्मीद जिन्हें होगी, उन्हें होगी,
हमें तो देखना है, तू ज़ालिम कहाँ तक है.
तेरे लिए खुद को मजबूर कर लिया,
ज़ख्मो को अपने नासूर कर लिया,
मेरे दिल में क्या था ये जाने बिना,
तुने खुद को हमसे कितना दूर कर लिया.

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