Friday, May 29, 2015

गम को समझ कर देंन इश्वर की, बस मुस्कुराते रहे हम I
जब भी मिले यारों से, गम छुपाकर हँसते-हंसाते रहे हम I

मोहब्बत की थी, इक यही था शायद कुसूर हमारा,
वो शिकस्त देते चले गए और मात खाते रहे हम I

नश्तर से चुभोते थे सदा वो अपनी कड़वी बातों से,
हमने तो किया था प्यार, सब कुछ भुलाते रहे हम I

जो भी कहा उससे मुकर गए वे कई बार जाने क्यूँ,
हमने तो किये थे वादे दिल से, सो निभाते रहे हम I

जो मारी ठोकर अपनों ने तो गिर कर न संभले फिर,
ज़िन्दगी देगी मौक़ा फिर, दिल को समझाते रहे हम I

बड़ा ही अजीब सा डर था मन में बचपन से जवानी तक,
इसलिए बच्चों को बहादुरी की कहानियाँ सुनाते रहे हम I

ख़ुशी और गम दोनों को ही कर दरकिनार किया हमने,
जो भी प्यार से मिला बस प्यार ही प्यार जताते रहे हम I

त्योंहार भी रिश्तों की तरह दूर हो गए हैं अब दिल से,
होली पे खुद अपने ही गालों पर गुलाल लगाते रहे हम I

जब भी मिला मौक़ा नीयत खराब कर ली हमने “चरन”
और दूसरों को सदा सच्चाई का रास्ता दिखाते रहे हम II


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