गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हे
गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहत नाद सुनने शुरू हो जाते हे
गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे
गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हे
गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे
गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे
गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे
गुरू वो चिदकाश हे जिसका कोई नाप नही
गुरू वो अमृत हे जिसे पिके कोई कभी प्यासा नही
गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की ज़लक मिलती हे
गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेश रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समज नही पाते
गुरू वो खजाना हे जो कभी अनमोल हे
गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे
गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही
गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहत नाद सुनने शुरू हो जाते हे
गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे
गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो पार हो जाते हे
गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे
गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे
गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे
गुरू वो चिदकाश हे जिसका कोई नाप नही
गुरू वो अमृत हे जिसे पिके कोई कभी प्यासा नही
गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की ज़लक मिलती हे
गुरू वो कृपा हि हे जो सिर्फ कुछ सद शिष्यो को विशेश रूप मे मिलती हे और कुछ पाकर भी समज नही पाते
गुरू वो खजाना हे जो कभी अनमोल हे
गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे
गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही
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