Tuesday, May 19, 2015

कन्धों के ये बोझ अगर वक़्त से पहले उतर जायें

 फिर जो ग़मों में जी रहें है वो ख़ुशी से मर जायें

जो जी रहे शराफ़त से उन्हे बुज़दिल न समझो

गर वो सबर न करें फिर तुम जैसे तो मर जायें

सोते को सब जगा सकते है जागते को कौन जगाये

होश में जो मयख़ाने गये है वो बेहोशी में किधर जायें

अलीम मेरी ख़ुशी देखकर तुम फिर उदास हो गये

तुम्हारे लिये ही टूटे थे कभी कहदो तो बिखर जायें

No comments:

Post a Comment