कन्धों के ये बोझ अगर वक़्त से पहले उतर जायें
फिर जो ग़मों में जी रहें है वो ख़ुशी से मर जायें
जो जी रहे शराफ़त से उन्हे बुज़दिल न समझो
गर वो सबर न करें फिर तुम जैसे तो मर जायें
सोते को सब जगा सकते है जागते को कौन जगाये
होश में जो मयख़ाने गये है वो बेहोशी में किधर जायें
अलीम मेरी ख़ुशी देखकर तुम फिर उदास हो गये
तुम्हारे लिये ही टूटे थे कभी कहदो तो बिखर जायें
फिर जो ग़मों में जी रहें है वो ख़ुशी से मर जायें
जो जी रहे शराफ़त से उन्हे बुज़दिल न समझो
गर वो सबर न करें फिर तुम जैसे तो मर जायें
सोते को सब जगा सकते है जागते को कौन जगाये
होश में जो मयख़ाने गये है वो बेहोशी में किधर जायें
अलीम मेरी ख़ुशी देखकर तुम फिर उदास हो गये
तुम्हारे लिये ही टूटे थे कभी कहदो तो बिखर जायें
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