Sunday, September 27, 2015

❤🌻❤🙏🙏❤🌻❤
सौदा हमारा कभी बाज़ार तक नही पहुंचा,
इश्क था जो कभी इज़हार तक नही पहुंचा,

यूँ तो गुफ्तगू बहुत हुई उनसे मेरी,
सिलसिला कभी ये प्यार तक नही पहुंचा,

जाने कैसे वाकिफ़ हो गया तमाम शहर,
दास्ताने-इश्क वैसे “अखबार” तक नही पहुंचा,

शर्तें एक दूसरे की मंज़ूर थी यूँ तो,
पर मसौदा हमारा कभी “करार” तक नही पहुंचा,

गहराई दोस्ती की मैं नापता भी कैसे,
रिश्ता हमारा कभी “तकरार” तक नही पहुंचा,.......
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