Monday, September 14, 2015

ऐसे करें दिन की शुरूआत !


सुहानी रात के पश्चात दिन की शुरुआत खूबसूरत सुबह से होती है। अगर हमारी सुबह सुखद होगी तो सारा दिन अच्छा बितेगा।


ज्योतिष शास्त्र में इसके लिए कुछ सिद्धांत निश्चित किए गए हैं जिससे सुबह की शुरुआत कैसे की जाए।


कुछ लोग सुबह उठते ही भगवान का नाम लेना पसंद करते हैं या अपनी हथेली का दर्शन करना अथवा किसी ऐसे व्यक्ति का चेहरा देखना पसंद करते हैं जिसके बारे में उनका मानना होता है की उसे देख कर दिन अच्छा गुजरेगा आदि।


१ . हमारे बुजुर्ग सुबह घर से निकलते समय दही खाते थे क्यों कि दही को पवित्र माना गया है।

 दही में इतने गुण होते हैं जिसके खाने से शरीर को बीमारीयों से लड़ने की शक्ति तो मिलती ही है साथ ही तन मन में सकारात्मकता का संचार होता है और नकारात्मकता का नाश होता है।

 शायद इसी कारणवश कोई भी पूजन दही के अभाव में अधूरी है।


२ . सुबह स्नान के बाद घर के आंगन या देवालय में लगे तुलसी के पौधे की गंध, फूल लाल वस्त्र अर्पित कर पूजा करें।

फल अथवा मिष्ठान का भोग लगाएं। धूप व दीप जलाकर उसके नजदीक बैठकर तुलसी की ही माला से तुलसी गायत्री मंत्र का श्रद्धा से सुख की कामना से कम से कम १०८ बार स्मरण कर अंत में तुलसी की पूजा करें !

 तत्पश्चात तुलसी के पत्तों का सेवन स्वयं भी करें और परिवार के सभी सदस्यों को भी करवाएं। ऐसा करने से बहुत से रोगों से बचाव होता है।


३ . घर में अन्न, वस्त्र और वैभव का समावेश हो इसके लिए सुबह शरीर को शुद्ध करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए जिस दिन स्वस्तिक बनाएं पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का स्वस्तिक ९० डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनाएं।

 केसर से, कुमकुम से, सिन्दूर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुली से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत बनाने पर घर के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन होता है।

 स्वस्तिक के अंदर लगभग १ लाख सकारात्मक ऊर्जाओं का अस्तित्व रहता है।


४ . सुबह घर से निकलने से पूर्व माता-पिता का आशीर्वाद लें। संसार में सबसे अनमोल कुछ है तो वह है माता-पिता का आशीर्वाद।

माता -पिता के चरण छुए जो चार धाम तीर्थ फल पावे, जो आशीर्वाद वह दिल से देवें भगवान भी उसे टाल न पावे।

 आशीर्वाद के बल पर सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंचा जा सकता है। सनातन धर्म में माता-पिता की सेवा को समस्त धर्मों का सार माना गया है।

समस्त धर्मों में पुण्यतम् कर्म माता-पिता की सेवा ही है। पांच महायज्ञों में भी माता -पिता की सेवा को सबसे अधिक महत्व प्रदान किया गया है।

पिता के प्रसन्न हो जाने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं और माता में सभी तीर्थ विद्यमान होते हैं।


५ . देवालय आस्था का केंद्र होता है। श्रद्धालु लोग अपने छोटे-छोटे घरों में भी कोई एक कोना पूजा-पाठ के लिए नियत कर लेते हैं।

श्री रूपों को रखने के लिए जगह की कमी हो, तो एक दीवार पर कैलेंडर टांग कर उसी से मंदिर का काम ले लेते हैं। घर से निकलने से पूर्व घर के देवालय में विराजित श्री भगवान का दर्शन करें।

 ऐसा करने से भगवान की कृपा बनी रहेगी और दिन अच्छा निकलेगा।


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