Monday, March 21, 2016

ऍ मेरे दोस्त मानता हूँ के गलती मेरी हे,
हुए आज खता मुजसे हे |

तू इस तरह से मुजसे खफा नाहो,
मेरी गलती को देखकर मुजसे जुदा नाहो |

मानता हु हुई हे भूल मुजसे,
करुंगा मे वो जो कहेगा तू मुजसे |

बस एक बार तू मुजसे बात करले,
मेरी गलती को सुधारने का एक मौका देदे |

इस तरहा मुजसे बात ना करके क्यो तकलीफ़ देता हे मुजे,
ऐसा ना हो ज़िंदगी रूठ जाये मुजसे फिर नफ़रत कैसे करेगा तू मुजे |

मेने कहीसे सुना था दोस्त कबी दोस्त से खफा नई होता,
तो आज ये तुजे हुआ क्या हे |

क्या उसने मुजसे ग़लत कहा था,
या फिर मे तेरा दोस्त नई |

किसी को मेये बता नई सकता इस ग़म को मे छिपा नई सकता,
सच बात तो येहे के मे तेरे बग़ैर जी नई सकता | j.k.

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