Sunday, April 3, 2016



आंसुओं को बहुत समझाया तनहाई में आया करो,
महिफ़ल मे आकर मेरा मजाक ना बनाया करो !
आँसूं बोले . . .
इतने लोग के बीच भी आपको तनहा पाता हूँ,
बस इसलिए साथ निभाने चले आता हूँ !

जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया,
हम सिख न पाये 'फरेब' और दिल बच्चा ही रह गया !

बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे...
पर अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओं को तन्हाई !

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से,
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में !

चलो मुस्कुराने की वजह ढुंढते हैं...
तुम हमें ढुंढो...हम तुम्हे ढुंढते हैं !!!

No comments:

Post a Comment