Saturday, April 2, 2016

बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ

याद आती है चौका, बासन, चिमटा, फूंकनी जैसी माँ

बांस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे

आधी सोई आधी जागी, थकी दोपहरी जैसी माँ

चिड़ियों के चहकार में गूंजे, राधा – मोहन अली- अली

मुर्गी की आवाज़ से खुलती, घर की कुण्डी जैसी माँ

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन, थोड़ी थोड़ी सब में

दिन भर इक रस्सी के ऊपर, चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें, जाने कहाँ गयी

फटे पुराने इक एलबम, में चंचल लड़की जैसी माँ..


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