भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्र उद्धव के साथ यमुना किनारे बैठे उन्हें ज्ञान दे रहे थे. तभी यमुनाजी में कई दीपक तैरते हुए आ रहे थे. जो दीपक किनारे की तरफ मुडते, श्रीकृष्ण उन्हें लपककर पकड़ लेते.
जो बीच में तैर रहे थे, उनको प्रभु जाने देते. उद्धव यह सब देखकर आश्चर्य में थे. थोडी देर बाद उद्धव भगवान से पूछ बैठे- प्रभु इतने दीपक आपने इकट्ठे क्यों किए?
माधव ने उन्हें समझाया- उद्धव, जो मध्यधारा में बहते हैं उन्हें मैं नहीं पकडता. जो मेरी ओर मुड़ते हैं उन्हें मैं लपककर पकड लेता हूं, अपने पास रख लेता हूं.
उसी प्रकार मनुष्य जो विषय रुपी संसार में बहते है, उन्हें बहने देता हूं. जो भक्ति से मेरी ओर मुडते है उन्हें मैं पकड लेता हूं और अपने पास रख लेता हूं, कभी फिर नहीं छोड़ता. वे मेरे हो जाते हैं.
उनके सुख-दुख सब मेरे हैं. उन्हें किसी भंवर में नहीं फंसने देता.
जो बीच में तैर रहे थे, उनको प्रभु जाने देते. उद्धव यह सब देखकर आश्चर्य में थे. थोडी देर बाद उद्धव भगवान से पूछ बैठे- प्रभु इतने दीपक आपने इकट्ठे क्यों किए?
माधव ने उन्हें समझाया- उद्धव, जो मध्यधारा में बहते हैं उन्हें मैं नहीं पकडता. जो मेरी ओर मुड़ते हैं उन्हें मैं लपककर पकड लेता हूं, अपने पास रख लेता हूं.
उसी प्रकार मनुष्य जो विषय रुपी संसार में बहते है, उन्हें बहने देता हूं. जो भक्ति से मेरी ओर मुडते है उन्हें मैं पकड लेता हूं और अपने पास रख लेता हूं, कभी फिर नहीं छोड़ता. वे मेरे हो जाते हैं.
उनके सुख-दुख सब मेरे हैं. उन्हें किसी भंवर में नहीं फंसने देता.
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