दिन सलीके से उगा .....
....रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ
..... रोज़ ज़माने से रही ।
चंद लम्हों को ही बनती हैं
..... मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी.... रोज़ .... तो
...... तस्वीर बनाने से रही ।
फ़ासला, चांद बना देता है...
...... हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो....
....... आने से रही ।
शहर में सबको कहाँ मिलती है ...
..... रोने की जगह
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ ....
..... हँसने - हँसाने से रही ।
जो खो जाता हैं मिलकर ज़िंदगी में....
..... ग़ज़ल है नाम
...'......उसका शायरी में ।
निकल आते हैं आँसू........
........ हँसते--हँसते
ये किस ग़म की कसक है.....
....... हर ख़ुशी में ।
कहीं चेहरा, कहीं आँखें .....
......कहीं लब.....
हमेशा एक मिलता है,
......कई में ।
गुजर जाती हैं.......
....यूँ ही उम्र सारी
......किसी को ढूँढ़ते हैं.....
...........हम किसी में ।
तेरी ज़ुल्फ़ों से
जुगनू
इक्तिसाबे-नूर करता हैं
ये बंजारा इसी बन में
थकावट
दूर करता है ।
....रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ
..... रोज़ ज़माने से रही ।
चंद लम्हों को ही बनती हैं
..... मुसव्विर आँखें
ज़िन्दगी.... रोज़ .... तो
...... तस्वीर बनाने से रही ।
फ़ासला, चांद बना देता है...
...... हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो....
....... आने से रही ।
शहर में सबको कहाँ मिलती है ...
..... रोने की जगह
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ ....
..... हँसने - हँसाने से रही ।
जो खो जाता हैं मिलकर ज़िंदगी में....
..... ग़ज़ल है नाम
...'......उसका शायरी में ।
निकल आते हैं आँसू........
........ हँसते--हँसते
ये किस ग़म की कसक है.....
....... हर ख़ुशी में ।
कहीं चेहरा, कहीं आँखें .....
......कहीं लब.....
हमेशा एक मिलता है,
......कई में ।
गुजर जाती हैं.......
....यूँ ही उम्र सारी
......किसी को ढूँढ़ते हैं.....
...........हम किसी में ।
तेरी ज़ुल्फ़ों से
जुगनू
इक्तिसाबे-नूर करता हैं
ये बंजारा इसी बन में
थकावट
दूर करता है ।
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