Monday, April 20, 2015

 हर तरफ़ हर जगह ....
               बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का....
                शिकार आदमी ।

सुबह से शाम तक......
              बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का.......
             खुद मज़ार आदमी ।

.....हर तरफ़......
            भागते-दौड़ते रास्ते....!
.....हर तरफ़.....
आदमी का....शिकार आदमी ।

रोज़ जीता हुआ.......
.......रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन......
...... नया इन्तिज़ार आदमी ।


ज़िंदगी का मुकद्दर .......
......सफ़र-दर-सफ़र .....
           आख़िरी साँस तक....

बेक़रार आदमी.....!!



 जो खो जाता हैं मिलकर ज़िंदगी में....
..... ग़ज़ल है नाम
 ...'......उसका शायरी में ।

 निकल आते हैं आँसू........
........ हँसते--हँसते
  ये किस ग़म की कसक है.....
....... हर ख़ुशी में ।

कहीं चेहरा, कहीं आँखें .....
......कहीं लब.....
हमेशा एक मिलता है,
  ......कई में ।

गुजर जाती हैं.......
....यूँ ही उम्र सारी
......किसी को ढूँढ़ते हैं.....
...........हम किसी में ।

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