Saturday, May 2, 2015

अच्छे-बुरे की परख के लिए ज्ञान जरूरी है, अन्यथा अविश्वास रही सही चीज भी छीन लेता है

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एक जौहरी के निधन के बाद उसका परिवार संकट में पड़ गया. खाने के भी लाले पड़ गए. जौहरी की पत्नी ने अपने बेटे को नीलम का एक हार देकर कहा- इसे अपने चाचा की दुकान पर ले जाओ. कहना इसे बेचकर कुछ रुपये दे दो.

चाचा ने हार को अच्छी तरह से देख परखकर कहा- बेटा, मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है. थोड़ा रुककर बेचें, अच्छे दाम मिलेंगे.

चाचा ने उसे थोड़े रुपए दिए और कहा तुम कल से दुकान पर आकर बैठो. वह लड़का दुकान पर हीरों की परख का काम सीखने लगा. जल्द ही हीरे की परख के लिए उसकी शोहरत हो गई.

एक दिन चाचा ने कहा- अपनी मां से वह हार लेकर आना. कहना अब बाजार तेज है, अच्छे दाम मिल जाएंगे. मां से हार लेकर उसने खुद परखा तो पाया कि वह तो नकली है.

वह हार को घर पर ही छोड़ कर दुकान लौट आया. उसने चाचा से कहा कि हार तो नकली था.

चाचा बोला- जब तुम पहली बार हार लेकर आए थे. यदि तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि बुरा वक्त आया तो चाचा हमारी चीज को भी नकली बताने लगे.

आज जब तुम्हें खुद असली और नकली की परख का ज्ञान हो गया तो पता चल गया कि हार सचमुच नकली है.

परिस्थितियां कई बार इतना परेशान कर देती हैं कि इंसान बेहद शंकालु हो जाता है. उसे ईश्वर के अस्तित्व तक पर शंका होने लगती है. वह परीक्षा का वक्त होता है.

अच्छे-बुरे की परख के लिए ज्ञान जरूरी है, अन्यथा अविश्वास रही सही चीज भी छीन लेता है. ज्ञान के बिना इस संसार में हम जो भी सोचते, देखते और जानते हैं, सब गलत है.

प्रभु हमारे ज्ञान के नेत्र खोल रहे होते हैं, ताकि हम जौहरी के बेटे जैसा हालात में तपकर कुंदन बन सकें.


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