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" इन्सान ,
घर बदलता है ...
लिबास बदलता है ...
रिश्ते बदलता है ...
दोस्त बदलता है ...
फिर भी परेशान क्यों रहेता है ....
क्योकि वो खुद को नहीं बदलता ... "
इसलिए मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था :
" उमर भर ग़ालिब यही भूल करता रहा ,
धूल चहेरे पे थी और आयना साफ करता रहा !!! "
एक सुंदर कविता ...
खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे।
क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
" इन्सान ,
घर बदलता है ...
लिबास बदलता है ...
रिश्ते बदलता है ...
दोस्त बदलता है ...
फिर भी परेशान क्यों रहेता है ....
क्योकि वो खुद को नहीं बदलता ... "
इसलिए मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था :
" उमर भर ग़ालिब यही भूल करता रहा ,
धूल चहेरे पे थी और आयना साफ करता रहा !!! "
एक सुंदर कविता ...
खवाहिश नही मुझे मशहुर होने की।
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे।
क्यों की जीसकी जीतनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी,
जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
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