Saturday, May 2, 2015

सफ़र को जब भी किसी
            दास्तान में रखना
क़दम यक़ीन में , मंज़िल
            गुमान में रखना ।

जो साथ है वही घर का
            नसीब है लेकिन
जो खो गया है उसे भी
           मकान में रखना ।

जो देखती हैं निगाहें
         वही नहीं सब कुछ
ये एहतियात भी अपने
          बयान में रखना ।





वो एक ख़्वाब जो चेहरा
          कभी नहीं बनता
बना के चांद उसे
           आसमान में रखना ।

चमकते चाँद-सितारों का
          क्या भरोसा है
ज़मीं की धूल भी अपनी
          उड़ान में रखना ।


सवाल तो बिना मेहनत के
        हल नहीं होते
नसीब को भी मगर
          इम्तहान में रखना ।


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