लाश मजबूर है , तैरने के लिये
चाहिए ज़िन्दगी, डूबने के लिये ।
क्या हुआ ग़र मिली है, ज़मी बीज को
बागवां चाहिये, पालने के लिये ।
गिरते को थामते थे, थी इंसानियत
अब वो जज़्बा कहां , थामने के लिये ।
हसरतों से ही मिलता है दर्द
जिग़र रखो, ख्वाहिशें मारने के लिये ।।
चाहिए ज़िन्दगी, डूबने के लिये ।
क्या हुआ ग़र मिली है, ज़मी बीज को
बागवां चाहिये, पालने के लिये ।
गिरते को थामते थे, थी इंसानियत
अब वो जज़्बा कहां , थामने के लिये ।
हसरतों से ही मिलता है दर्द
जिग़र रखो, ख्वाहिशें मारने के लिये ।।
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