Sunday, August 23, 2015

जिन्दगी की दौड़ में...
 तजुर्बा कच्चा ही रह गया..... हम सिख न पाये 'फरेब' और दिल बच्चा ही रह गया....!

चलो कुछ पुराने दोस्तों के,
दरवाज़े खटखटाते हैं;

देखते हैं उनके पँख थक चुके है,
या अभी भी फड़फड़ाते हैं;

हँसते हैं खिलखिलाकर,
या होंठ बंद कर मुस्कुराते हैं;

वो बता देतें हैं सारी आपबीती,
या सिर्फ सक्सेस स्टोरी सुनाते हैं;

हमारा चेहरा देख वो, अपनेपन से मुस्कुराते हैं;

या घड़ी की और देखकर, हमें जाने का वक़्त बताते हैं ।

चलो कुछ पुराने दोस्तों के, दरवाज़े खटखटाते हैं...👌👌

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