Saturday, August 29, 2015

जिन्होंने मुझे प्रेम से सुना, वे रो पायेंगे।

जिन्होंने मुझे सिर्फ बुद्धि से सुना वे कुछ निष्कर्ष, ज्ञान लेकर जायेंगे। वे राख लेकर जायेंगे—प्रेम का अंगारा नहीं।

वे ऐसी राख लेकर जायेंगे जो फिर कभी नहीं सुलगेगी। याद रखना! वह बुझ गयी!

वह तो मैंने तुमसे जब कही तब ही बुझ गयी। अगर तुमने बुद्धि में ली तो राख, अगर तुमने हृदय में ले ली तो अंगारा।

ओशो
एक बहुत बडे झेन सदगुरु लिंची कहा करते थे :

मैं जब युवा था तो मुझे नौका—विहार का बहुत शौक था। मेरे पास एक छोटी सी नाव थी और उसे लेकर मैं अक्सर अकेला झील की सैर करता था। मैं घंटों झील में रहता था।

एक दिन ऐसा हुआ कि मैं अपनी नाव में आंख बंद कर सुंदर रात पर ध्यान कर रहा था। तभी एक खाली नाव उलटी दिशा से आई और मेरी नाव से टकरा गई। मेरी आंखें बंद थीं, इसलिए मैंने मन में सोचा कि किसी व्यक्ति ने अपनी नाव मेरी नाव से टकरा दी है और मुझे क्रोध आ गया।

मैंने आंखें खोलीं और मैं उस व्यक्ति को क्रोध में कुछ कहने ही जा रहा था कि मैंने देखा कि दूसरी नाव खाली है। अब मुझे कुछ करने का कोई उपाय न रहा। किस पर यह क्रोध प्रकट करूं? नाव तो खाली है! और वह नाव धार के साथ बहकर आई थी और मेरी नाव से टकरा गई थी। अब मेरे लिए कुछ भी करने को न रहा। एक खाली नाव पर क्रोध उतारने की कोई संभावना न थी। तब फिर एक ही उपाय बाकी रहा। मैंने आंखें बंद कीं और अपने क्रोध को पकड़कर उलटी दिशा में बहना शुरू किया। और वह खाली नाव मेरे आत्मज्ञान का कारण बन गई। उस मौन रात में मैं अपने भीतर, अपने केंद्र पर पहुंच गया। वह खाली नाव मेरा गुरु थी।

और फिर लिंची ने कहा, अब जब कोई आदमी मेरा अपमान करता है तो मैं हंसता हूं और कहता हूं कि यह नाव भी खाली है। मैं आंखें बंद करता हूं और अपने भीतर चला जाता हूं।

इस विधि को प्रयोग करो। यह तुम्हारे लिए चमत्कार कर सकती है।


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