Saturday, August 29, 2015

पहली बार किसी पोस्ट को पढ़कर आंसू आ गए।,

शख्सियत, ए 'लख्ते-जिगर, कहला न सका!

"जन्नत,, के धनी "पैर, कभी सहला न सका।.

'दुध, पिलाया उसने छाती से 'निचोड़कर,मैं
'निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका।

बुढापे का "सहारा,, हूँ 'अहसास, दिला न सका।

पेट पर सुलाने वाली को 'मखमल, पर सुला न सका।

वो 'भूखी, सो गई 'बहू, के 'डर, से एक बार
मांगकर, मैं "सुकुन,, के 'दो, निवाले उसे खिला न सका ।

नजरें उन 'बुढी, "आंखों,से कभी मिला न सका ।

वो 'दर्द, सहती रही में खटिया पर तिलमिला न सका ।.

जो हर "ममता के रंग पहनाती रही मुझे,उसे "Diwali पर दो 'जोड़,कपडे सिला न सका ।

"बिमार,, बिस्तर से उसे'शिफा, दिला न सका ।

'खर्च, के डर से उसे बडे'अस्पताल, ले जा न सका ।

"माँ" के बेटा कहकर
'दम, तौडने बाद से अब तक सोच रहा हूँ,

'दवाई, इतनी भी "महंगी,,न थी के मैं ला ना सका l

🙏Pls Care Ours Parents....🙏

😢😢😢😢😢😢😒😒😒😒😒😒😒😒


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