Sunday, September 6, 2015

"राहत" भी अपनोंसे मिलती हैं, .

"चाहत" भी अपनोंसे मिलती हैं, ..

"अपनोंसे कभी रुठना नहीं, क्योंकी...

"मुस्कुराहट" भी सिर्फ अपनोंसे मिलती हैं....
💞




: तुझ बिन ये जहान विरान सा लगता है
जब भी देखूँ दर्पण , मेरा ही अक्स धुंधला सा लगता है
रूह मेरी मे बसा तू इस कदर , मुझे तू मेरा खुदा सा लगता है
तुझ बिन ये जहान विरान सा लगता है


No comments:

Post a Comment