इक उम्र बीतानी है , मुझे उस के बगैर,
और इक रात है कि मुझसे गुज़रती नहीं....
मिले जब चार कंधे तो ने ये कहा मुझसे !
जीते जी मिला होता तो.....एक काफी था !!
वक़्त की कीमत कोई उस अख़बार से पूछे . . .
दिन बीत जाने के बाद जिसकी कोई कीमत नहीं होती . . .
तू गलती से भी कन्धा न देना मेरे जनाजे को ऐ
दोस्त....
कहीं फिर जिन्दा न हो जाऊं तेरा सहारा देखकर.! "
हर चीज़ "हद" में अच्छी लगती हैं-----!!
मगर तुम हो के "बे-हद" अच्छे लगते हो ।।।।
एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ,
बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान रखता हूँ,
रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ
दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।
रब सै ही माँगा करता हु बंदौ सै नहीं माँगता !
मैं मुफलिसी में भी नवाबी शान रखता हूँ।
मुर्दों की बस्ती में ज़मीर को ज़िंदा रख कर,
ए जिंदगी मैं तेरे उसूलों का मान रखता हूँ।
गिरते हैं शहंशाह ही मैदाने जंग में ,,,,,,,,
वो क्या खाक गिरेंगे…..... ......
जो घुटनों के बल चलते हैं !!!
और इक रात है कि मुझसे गुज़रती नहीं....
मिले जब चार कंधे तो ने ये कहा मुझसे !
जीते जी मिला होता तो.....एक काफी था !!
वक़्त की कीमत कोई उस अख़बार से पूछे . . .
दिन बीत जाने के बाद जिसकी कोई कीमत नहीं होती . . .
तू गलती से भी कन्धा न देना मेरे जनाजे को ऐ
दोस्त....
कहीं फिर जिन्दा न हो जाऊं तेरा सहारा देखकर.! "
हर चीज़ "हद" में अच्छी लगती हैं-----!!
मगर तुम हो के "बे-हद" अच्छे लगते हो ।।।।
एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ,
बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान रखता हूँ,
रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ
दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।
रब सै ही माँगा करता हु बंदौ सै नहीं माँगता !
मैं मुफलिसी में भी नवाबी शान रखता हूँ।
मुर्दों की बस्ती में ज़मीर को ज़िंदा रख कर,
ए जिंदगी मैं तेरे उसूलों का मान रखता हूँ।
गिरते हैं शहंशाह ही मैदाने जंग में ,,,,,,,,
वो क्या खाक गिरेंगे…..... ......
जो घुटनों के बल चलते हैं !!!
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