Friday, September 26, 2014

किसके लिए जन्नत बनायी है तुने ...
ऐ खुदा...।...
कौन है यहाँ इस जहां मे जो गुनाहगार नहीं...।


वो मेरी किस्मत मेरी तकदीर हो गयी;
हमने उनकी याद में इतने ख़त लिखे कि;
वह 'रद्दी' बेचकर ही अमीर हो गयी.



होठों को छुआ उसने तो, एहसास अब तक है;
आंखे नम हुई तो सांसो में आग अब तक है;
वक़्त गुजर गया, पर उसकी याद नही गई;
क्या कहूं, हरी मिर्च का स्वाद अब तक है.


ऐसी बाणी बोलियें की सबसे झगड़ा होए;
पर उससे झगड़ा न करिये, जो अपने से तगड़ा होए.



 इतने कमज़ोर हुए तेरी जुदाई में;
जर्रा गौर फर्रमाँइए,
इतने कमज़ोर हुए तेरी जुदाई में;
कि चींटी भी अब खींच ले जाती है 'चारपाई' से.


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