जब बहारें चमन में खिलती हैं
तेरी जुल्फों की बात होती हैं
ये जो सुलझें तो दिन निकलता हैं
ये जो उलझें तो रात होती हैं ।
फैला हुआ है रंग फिजाओं मे तूर का
आँचल में चांदनी है कि चेहरा है नूर का ।
महका हुआ बदन है कि गुलशन रुका हुआ
ये रुप है कि रुप का दरिया रुका हुआ ।
सिमटा हुआ बदन है हया से कुछ इस तरह
सहमा हुआ चिराग़ हो जिस तरह ।
नज़दीक आके भी आलम है दूर का ।
आँचल हटा के, हुस्न की ख़ैरात दीजिये
ढलने लगी है रात कोई बात कीजिये
है क्या क़ुसूर फिर भी इस बेक़ुसूर का.......
हम ऐसी महफ़िल में कैसे जायें
जहां के मंज़र हमें जलायें ।
अगर है जलना जलेंगे तनहा
न तुमसे मिलते न ऐसे होते ।
तेरी जुल्फों की बात होती हैं
ये जो सुलझें तो दिन निकलता हैं
ये जो उलझें तो रात होती हैं ।
फैला हुआ है रंग फिजाओं मे तूर का
आँचल में चांदनी है कि चेहरा है नूर का ।
महका हुआ बदन है कि गुलशन रुका हुआ
ये रुप है कि रुप का दरिया रुका हुआ ।
सिमटा हुआ बदन है हया से कुछ इस तरह
सहमा हुआ चिराग़ हो जिस तरह ।
नज़दीक आके भी आलम है दूर का ।
आँचल हटा के, हुस्न की ख़ैरात दीजिये
ढलने लगी है रात कोई बात कीजिये
है क्या क़ुसूर फिर भी इस बेक़ुसूर का.......
हम ऐसी महफ़िल में कैसे जायें
जहां के मंज़र हमें जलायें ।
अगर है जलना जलेंगे तनहा
न तुमसे मिलते न ऐसे होते ।
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