कोई चाहे कितना भी महान क्यों ना हो जाए, पर कुदरत कभी भी किसीको महान बननेका मौका नहीं देती।।
कंठ दिया कोयलको, तो रूप छीन लिया। रूप दिया मोरको, तो ईच्छा छीन ली। दि ईच्छा इन्सानको, तो संतोष छीन लिया। दिया संतोष संतको, तो संसार छीन लिया। दिया संसार चलाने देवी-देवताओंको, तो उनसे भी मोक्ष छीन लिया। दिया मोक्ष उस निराकारको, तो उसका भी आकार छीन लिया।।
मत करना कभी भी ग़ुरूर अपने आप पर 'ऐ इंसान', मेरे रबने तेरे और मेरे जैसे कितने मिट्टीसे बनाके मिट्टीमें मिला दिए।।
कंठ दिया कोयलको, तो रूप छीन लिया। रूप दिया मोरको, तो ईच्छा छीन ली। दि ईच्छा इन्सानको, तो संतोष छीन लिया। दिया संतोष संतको, तो संसार छीन लिया। दिया संसार चलाने देवी-देवताओंको, तो उनसे भी मोक्ष छीन लिया। दिया मोक्ष उस निराकारको, तो उसका भी आकार छीन लिया।।
मत करना कभी भी ग़ुरूर अपने आप पर 'ऐ इंसान', मेरे रबने तेरे और मेरे जैसे कितने मिट्टीसे बनाके मिट्टीमें मिला दिए।।
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