Thursday, October 30, 2014

 कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...

 बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में..

 कांपते होठों से मैंने पुछा,
"क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"

 दूकानदार बोला:

 "कौनसा लोगे..?

 बेटे का ..या बाप का..?

 बहिन का..या भाई का..?

 बोलो कौनसा चाहिए..?

 इंसानियत का.या प्रेम का..?

 माँ का..या विश्वास का..?

 बाबूजी कुछ तो बोलो कौनसा चाहिए.चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...

 मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?

 दुकानदार नम आँखों से बोला:

 "संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है ..,माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे,

 और जिस दिन ये बिक जायेगा... उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा..."

सभी मित्रों को समर्पित..
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