Saturday, October 25, 2014

आज भी उनदिनों को
याद करती हूँ मैं
तुम्हारा प्यार बोलता था मुझ में
घंटों बतियाना
बेसुध हो जाना
एक दूसरे में समा जाना
अनजानी दुनिया में खो जाना
पकडम पकड़ाई के खेल में
ऐसे चंचल बच्चे बन जाना
शरारते करना
बेहिसाब प्यार करना
सपने देखना और सपने दिखाना
एक एक पल याद हैं
क्या याद है तुम्हें भी
अब तो याद भी नहीं करते
क्या हमारा प्यार इतना भी
सच्चा न था
क्या कहूं अब तुम्हें
तुम शुरू से ही दब्बू रहे
पर मोके का फायदा भी
उठाया है तुमने
क्या मैं नहीं जानती
एक बार मिलते हैं उसी जगह
एक बार फिर बच्चे बन कर
शरारत करने का मन हैं
समा जाने का मन है
मुझे पता है
मना नहीं करोगे तुम
अगले हफ्ते दोपहर बारह बजे
शार्प मिल जाना
नहीं तो
तुम समझते ही हो
मुझे न सुनने की आदत नहीं
अपनी बात कह मैंने फोन रख दिया
तुम लाख कहते रहे
अब वक्त बदल गया है
हमारी जिम्मेवारियां भी
ऐसे मिलना ठीक नहीं
तुम! तो ऐसे ना थे
अपनी दोस्त के लिए
जो कभी तुम्हारा प्यार होती थी
उसके लिए समय नहीं
धिक्कार है तुम पर
जो मैंने तुम्हें दोस्त कहा
वेटर, वन मोर लार्ज प्लीज
रिपीट कर देना
साला नशा नहीं हो रहा
क्या नकली माल तो नहीं
रिश्ते नकली
शराब नकली
और अब तो वादे नकली
जाने दे
इतना भी क्या सोचना!!

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