Friday, September 11, 2015

यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते :-

🔹नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
       बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
🔹पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज!
      कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
🔹भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
     बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
🔹मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
      बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
🔹बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
      पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
🔹पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
      मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग!!
🔹फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
     पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर!
🔹पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
     भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!


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