Saturday, April 2, 2016

((((((((((( समर्पण ))))))))))))
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एक बार किसी देश का राजा अपनी प्रजा का
हाल-चाल पूछने के लिए गाँवों में घूम रहा था
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घूमते-घूमते उसके कुर्ते का बटन टूट गया उसने अपने मंत्री
को कहा कि पता करो की इस गांव में कौन सा
दर्जी है जो मेरे बटन को सिल सके
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मंत्री ने पता किया उस गांव में सिर्फ एक ही दर्जी
था जो कपडे सिलने का काम करता था
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उसको राजा के सामने ले जाया गया राजा ने कहा
कि तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो
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दर्जी ने कहा यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है
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उसने मन्त्री से बटन ले लिया, धागे से उसने राजा के
कुर्ते का बटन फौरन सीं दिया
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क्योंकि बटन भी राजा के पास था सिर्फ उसको
अपना धागा प्रयोग करना था
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राजा ने दर्जी से पूछा कि कितने पैसे दूं, उसने कहा
महाराज रहने दो छोटा सा काम था,
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उसने मन में सोचा कि बटन राजा के पास था उसने
तो सिर्फ धागा ही लगाया है ,
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राजा ने फिर से दर्जी को कहा कि नहीं नहीं
बोलो कितने दूं,
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दर्जी ने सोचा की 2 रूपये मांग लेता हूँ....
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फिर मन ने यही सोच आ गयी कि कही राजा यह न
सोचे की बटन टांकने के मेरे से 2 रुपये ले रहा है तो
गाँव बालों से कितना लेता होगा क्योंकि उस जमाने
में 2 रुपये की कीमत बहुत होती थी॥
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दर्जी ने राजा से कहा कि महाराज जो भी आप
का ध्यान हो, वह दे दो
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अब राजा तो राजा था उसको अपने हिसाब से
देना था कहीं देने में उसकी पोजीशन ख़राब न हो
जाये,
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उसने अपने मंत्री को कहा कि इस दर्जी को 2 गांव दे
दो, यह हमारा हुकम है।
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कहां पर तो दर्जी सिर्फ 2 रुपये की मांग कर रहा
था और कहां पर राजा ने उसको 2 गांव दे दिए ॥
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इसी तरह जब हम प्रभु पर सब कुछ छोड़ते हैं तो वह अपने
हिसाब से देता है, सिर्फ हम मांगने में कमी कर जाते
हैं,
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देने वाला तो पता नही क्या देना चाहता है॥
और हम बड़ी तुच्छ वस्तु मांग लेते हैं।
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इसलिए संत-महात्मा कहते है, प्रभु के चरणों पर अपना
सर्मपण कर दो, उनसे कभी कुछ न मांगों, जो वो अपने
आप दें बस उसी से संतुष्ट रहो, फिर देखो इसकी
लीला।
वारे के न्यारे न कर दे तो कहना

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