Sunday, July 31, 2016

~~~मेरे जख्म गहरे हैं~~~

कुछ यादों के पहरे हैं
मोहब्बत के नखरे हैं
कदम बढाया जब भी हमने
ठोकर खाकर बिखरें हैं
पर हम गिरकर भी संभले हैं
मेरे जख्म गहरे हैं !

उजालों ने जब भी कश्मोकश में
अंधेरो से दोस्ती की है
हमने तन्हाई के आलम में
बेशक खुद से दुश्मनी की है
याद तेरे हैं , जजबात मेरे हैं
मेरे जख्म गहरे हैं !

मिलते मिलते बिछड़ा था कोई
मेरे दिल का टुकड़ा था कोई
आँखों में वो हँसता था
दिल में मेरे बसता था
अब यादों की परछाईं है
मीलो लम्बी तन्हाई है
अश्क भरे हैं दिल में मेरे
आँखों से मन के घावों तक
हर दर्द अब सहने हैं
मेरे जख्म गहरे हैं !

ज़िन्दगी के हर ख्वाब रुपहले हैं
कभी सुख कभी दुःख पहले हैं
हर सुख दुःख दिल को सहने हैं
ना किसी से कुछ कहने हैं
किसे कहें मेरे अपने हैं
मेरे जख्म गहरे हैं !

यह कविता क्यों ? ज़िन्दगी हर हाल में जिनी तो है सुख दुःख के अश्क पीने तो हैं हर जख्म भर जाते हैं वक़्त के मरहम से बस जियो ज़िन्दगी सच्चे मन से !

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