Thursday, July 21, 2016

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बेजुबान पत्थर पे लदे है करोंडो के गहने मंदिरो में ।

उसी देहलीज पे एक रूपये को तरसते नन्हें हाथों को देखा है।

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सजे थे छप्पन भोग और मेवे मूर्ती के आगे ।

बाहर एक फ़कीर को भूख से तड़प के मरते देखा है ll
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लदी हुई है रेशमी चादरों से वो हरी मजार,

पर बाहर एक बूढ़ी अम्मा को ठंड से ठिठुरते देखा है।

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वो दे आया एक लाख गुरद्वारे में हॉल के लिए,

घर में उसको 500 रूपये के लिए काम वाली बाई बदलते देखा है।


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जलाती रही जो अखन्ड ज्योति देसी घी की दिन रात पुजारन,

आज उसे प्रसव में कुपोषण के कारण मौत से लड़ते देखा है ।
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जिसने नहीं दी माँ बाप को भर पेट रोटी कभी जीते जी ,

आज लगाते उसको भंडारे मरने के बाद देखा है ll

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दे के समाज की दुहाई ब्याह दिया था जिस बेटी को जबरन बाप ने,

आज पिटते उसी शौहर के हाथों सरे बाजार देखा है ।

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मारा गया वो पंडित बेमौत सड़क दुर्घटना में यारों ,

जिसे खुद को काल सर्प,तारे और हाथ की लकीरों का माहिर लिखते देखा है

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जिस घर की एकता की देता था जमाना कभी मिसाल दोस्तों

आज उसी आँगन में खिंचती दीवार को देखा है।
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बंद कर दिया सांपों को सपेरे ने यह कहकर,

अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आएगा।
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आत्महत्या कर ली गिरगिट ने सुसाइड नोट छोडकर,

अब इंसान से ज्यादा मैं रंग नहीं बदल सकता।
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गिद्ध भी कहीं चले गए लगता है

उन्होंने देख लिया कि,इंसान हमसे अच्छा नोंचता है।
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कुत्ते कोमा में चले गए,ये देखकर कि

क्या मस्त तलवे चाटते हुए इंसान को देखा है ।

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