Saturday, July 23, 2016

मॉ तुलसी कौन हैं पढ़ें जरुर
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तुलसी एक लड़की थी जिसका नाम
वृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन
से ही भगवान विष्णु
जी की भक्त
थी.बड़े ही प्रेम से भगवान
की सेवा,पूजा किया करती थी.जब
वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस
कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र
से उत्पन्न हुआ
था.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने
पति की सेवा किया करती थी,
एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब
जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -
स्वामी आप युध्द पर जा रहे है आप
जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकर
आपकी जीत के लिये
अनुष्ठान करुंगी, और जब तक आप
वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प
नही छोडूगीं, जलंधर
तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर
पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव
से देवता भी जलंधर
को ना जीत सके सारे देवता जब हारने
लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये,
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान
कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त
है में उसके साथ छल नहीं कर
सकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय
भी तो नहीं है अब आप
ही हमारी मदद कर सकते
है.
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और
वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे
ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत
पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे
ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ
ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग
कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने
देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये
जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है ?
उन्होने पूछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मेने
किया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ
ना बोल सके, वृंदा सारी बात समझ
गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के
हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गये
सबी देवता हाहाकार करने लगे
लक्ष्मी जी रोने लगे और
प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान
को वापस वैसा ही कर दिया और अपने
पति का सिर लेकर वे
सती हो गईं !
उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप
इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से
तुलसी जी के साथ
ही पूजा जायेगा और में
बिना तुलसी जी के भोग
स्वीकार नहीं करुगा. तब से
तुलसी जी कि पूजा सभी करने
लगे, और
तुलसी जी का विवाह
शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में
किया जाता है.देवउठनी एकादशी के
दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है.....
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इस कथा को कम से कम दो लोगोंको अवश्यय सुनाएें आप को पुण्य अवश्य मिलेगा !

🙏जय श्री राधे 🙏


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