Thursday, July 28, 2016

टूट-टूट के जुड़ने का हुनर काम आया बहुत ।
आख़िर इसी तरह आराम आया बहुत ।।

मैं आज़ फ़िर ख़ुद को समेट रहा हूँ ।
तेरा ख़याल फ़िर कल शाम आया बहुत ।।

वो जिससे बिछड़ने में एक लम्हा लगा ।
वो याद एक उम्र तमाम आया बहुत ।।

ज़िन्दगी में ये मक़ाम आया बहुत ।
मेरे नाम के साथ तेरा नाम आया बहुत ।।

उसने पत्थर फेंके, मैंने दीवार बना ली ।
और इस तरह, वो मेरे काम आया बहुत ।।

No comments:

Post a Comment