टूट-टूट के जुड़ने का हुनर काम आया बहुत ।
आख़िर इसी तरह आराम आया बहुत ।।
मैं आज़ फ़िर ख़ुद को समेट रहा हूँ ।
तेरा ख़याल फ़िर कल शाम आया बहुत ।।
वो जिससे बिछड़ने में एक लम्हा लगा ।
वो याद एक उम्र तमाम आया बहुत ।।
ज़िन्दगी में ये मक़ाम आया बहुत ।
मेरे नाम के साथ तेरा नाम आया बहुत ।।
उसने पत्थर फेंके, मैंने दीवार बना ली ।
और इस तरह, वो मेरे काम आया बहुत ।।
आख़िर इसी तरह आराम आया बहुत ।।
मैं आज़ फ़िर ख़ुद को समेट रहा हूँ ।
तेरा ख़याल फ़िर कल शाम आया बहुत ।।
वो जिससे बिछड़ने में एक लम्हा लगा ।
वो याद एक उम्र तमाम आया बहुत ।।
ज़िन्दगी में ये मक़ाम आया बहुत ।
मेरे नाम के साथ तेरा नाम आया बहुत ।।
उसने पत्थर फेंके, मैंने दीवार बना ली ।
और इस तरह, वो मेरे काम आया बहुत ।।
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