Thursday, July 21, 2016

इस ओर से आता हूं मैं, उस ओर से आती हो तुम
यूं रोज ही मेरे रू ब रू, आके गुजर जाती हो तुम

नहीं जानता क्या नाम है तेरा ऐ हसीन अजनबी
मुझसे मगर दो नर्गिसी आंखें तो मिलाती हो तुम

हमने तुझे देखा है जब, तन्हा सी ही लगती हो क्यूं
मेरे दिल में यही सवाल बार-बार जगाती हो तुम

बिखरी हुई लगती हो क्यूं, जरा जुल्फें तो संवार लो
ये कौन सा गम है जिसे सूरत पे सजाती हो तुम

मौका मिलेगा जो कहीं तो पूछ लूंगा तुमसे कभी
क्या दर्द के शायर से अपना दिल लगाती हो तुम

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