Saturday, July 23, 2016

हम संभलकर भी चले तो ठोंकरों में आ गये,
आप क्यों पत्थर उठाकर रास्तों में आ गये ।

यूं सितारे टूटते हैं, नाचती है रौशनी,
जैसे तेरे तमाम वादें तजरिबां में आ गये ।

जो किसी के कुछ नहीं लगते हैं, उनसे पूछ लो,
किसकी आहट पर तड़क कर खिड़कियों में आ गये ।

चांदनी रातें, सुलगते पेड़ अपनी वहशतें,
कैसे-कैसे रंग अपने रतजगों में आ गये ।

सुबह की पहली किरन है हम, चिराग़े-शब नहीं,
क्या हुआ जो हम बिखर के आंधियों में आ गये ।।


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