Tuesday, July 12, 2016

आँखों में था जवाब हम लफ़्ज़ों में ढूँढ़ते रहे
वो बोलते रहे और हम बस सुनते रहे
काश के पढ़ लेते उनकी आँखों में लफ्ज़
हम तो पढ़ लिख के भी इश्क़ में अनपढ़ रहे
वो छोड़ गए साथ मेरा यकीं नही आता मुझे
हम तो हर मोड़ पे उनकी राह तकते रहे
जो कहा करते थे उनके चेहरे का नूर हूँ मैं
वो उस नूर को बेनूर करके रह गए
कर के हमे रुसवा खुश तो बहुत हैं वो
हम तो बस आंसू बहाते रह गए
दिया मोहब्बत का ऐसा ज़ख्म जो ठीक न हो
उसका हम इलाज़ कराते रह गए ।

No comments:

Post a Comment