उर्दू बहुत ही दिलचस्प और अर्थपूर्ण भाषा हैं...
"निकाह और जनाजा"
के फर्क को एक उर्दू शायर ने कितनी खूबसूरती से व्यक्त किया हैं, कविता का नाम हैं....
"फर्क सिर्फ इतना सा था"
तेरी डोली उठी
मेरी मय्यत उठी,
फूल तुझ पर भी बरसे
फूल मुझ पर भी बरसे,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
कि तू सज गयी
और मुझे सजाया गया !!
तू भी घर को चली
मैं भी घर को चला,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
तू उठ कर गयी
और मुझे उठाया गया !!
महफिल वहां भी थी
लोग यहां भी थे,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
उनका हंसना वहां
इनका रोना यहां !!
काजी उधर भी था
मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढ़े
दो बोल मेरे पढ़े,
तेरा निकाह पढ़ा
मेरा जनाजा पढ़ा,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
तुझे अपनाया गया
मुझे दफनाया गया !!
••••••••••••••••
"निकाह और जनाजा"
के फर्क को एक उर्दू शायर ने कितनी खूबसूरती से व्यक्त किया हैं, कविता का नाम हैं....
"फर्क सिर्फ इतना सा था"
तेरी डोली उठी
मेरी मय्यत उठी,
फूल तुझ पर भी बरसे
फूल मुझ पर भी बरसे,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
कि तू सज गयी
और मुझे सजाया गया !!
तू भी घर को चली
मैं भी घर को चला,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
तू उठ कर गयी
और मुझे उठाया गया !!
महफिल वहां भी थी
लोग यहां भी थे,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
उनका हंसना वहां
इनका रोना यहां !!
काजी उधर भी था
मौलवी इधर भी था,
दो बोल तेरे पढ़े
दो बोल मेरे पढ़े,
तेरा निकाह पढ़ा
मेरा जनाजा पढ़ा,
फर्क सिर्फ इतना सा था...
तुझे अपनाया गया
मुझे दफनाया गया !!
••••••••••••••••
No comments:
Post a Comment